स्रोत: गेटी
लेख

सीमा पर स्थिरता: गलवान के बाद की परिस्थिति में आगे बढ़ने का एक संभावित रास्ता

यह पेपर उन वजहों की जांच करता है कि LAC पर शांति बनाए रखने के लिए भारत और चीन के बीच मौजूद समझौते और उपाय पूरी तरह से सफल क्यों नहीं हुए, दोनों पक्ष 2020 के बाद के परिदृश्य में सीमा को सुरक्षित बनाने के मुद्दे को कैसे संभाल सकते हैं, और सरहदी इलाकों में अमन-चैन के लिए फिर से कोई ढांचा तैयार करने के लिए भारत के सामने संभावित विकल्प क्या हैं।

3 अप्रैल 2024

सारांश

गलवान घाटी की घटना के तीन साल बाद भी मामले को सुलझाने के लिए द्विपक्षीय वार्ता के बावजूद भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर स्थिति असामान्य बनी हुई है। हालांकि बात आगे बढ़ रही है, दोनों तरफ सैनिकों का जैसा जमावड़ा है और उन्हें जितना पास-पास तैनात किया गया है, उससे घातक दुर्घटना या अनपेक्षित मुठभेड़ की आशंका बढ़ जाती है। भले ही पारस्परिक रूप से संतोषजनक समाधान मिल जाए, दोनों देशों के बीच व्यापक राजनीतिक समझ बनाने और भरोसे में कमी को दूर करने में अभी भी कई महीने लग सकते हैं।

यह पेपर इस बात की जांच करता है कि LAC पर शांति बनाए रखने के लिए मौजूद समझौते और उपाय 2013 से अब तक (2020 में गलवान घाटी समेत) दोनों पक्षों के बीच सैन्य टकराव को कम करने में पूरी तरह से सफल क्यों नहीं हुए। इसमें यह भी पता लगाने की कोशिश की गई है कि तीन चरणों के जिस सूत्र1 की बात की जा रही है क्या वह समस्या को हल करने का तरीका है। यह सूत्र है सेनाओं का डिसएंगेजमेंट (अपनी पोज़िशन से पीछे हटना), डी-एस्केलेशन (संघर्ष के माहौल को हल्का करना), और डी-इंडक्शन2 (सेनाओं का हटाया जाना)। खास तौर पर, यह देखते हुए कि दोनों पक्षों के बीच आपसी भरोसे की कमी है, और साथ ही जिस तरह की भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियों में दोनों पक्ष काम करते हैं, क्या डी-इंडक्शन मुमकिन हो पाएगा। पेपर का निष्कर्ष है कि जब तक राजनीतिक विश्वास मौजूद नहीं होगा, तब तक सेनाओं का हटाया जाना मुमकिन नहीं हो सकता है। भारत को ताज़ा हमलों का जवाब देने के लिए LAC पर एक भरोसेमंद प्रतिरोधक क्षमता और पृष्ठभूमि में सैनिकों का पर्याप्त बैकअप बनाकर लंबे समय के लिए सैन्य तैयारियां रखनी चाहिए, साथ ही सरहदी इलाकों में अस्थायी समझौते पर बातचीत करने के लिए चीन को मनाते रहना चाहिए। इस पेपर में चीन के साथ नए संतुलन पर बातचीत करने और प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के कुछ खास विकल्प सुझाए गए हैं।

 

पेपर के पहले सेक्शन में उन तरीकों पर गौर किया गया है जिनसे दोनों पक्षों ने 1990 के दशक में सीमा प्रबंधन की बुनियाद बनाई। इसका उद्देश्य यह पता लगाना है कि कौन से तत्व शांति स्थापित करने में सफल रहे और हाल के समय में इस फ्रेमवर्क में दिक्कत क्यों दिखी है। इस सेक्शन में इस बात पर खास ध्यान दिलाया गया है कि बॉर्डर मैनेजमेंट फ्रेमवर्क में, जैसा कि सोचा गया था, अनपेक्षित संघर्ष को रोकने के लिए तत्काल उपाय और सेना की कटौती के माध्यम से पूरे सीमा क्षेत्र में शांति बनाए रखने के दीर्घकालिक तरीके और साधन शामिल थे। इसमें उन संभावित कारणों का पता लगाया गया है कि सेना की कटौती के दीर्घकालिक उद्देश्य को पूरा क्यों नहीं किया गया। पेपर का निष्कर्ष है कि स्थायी शांति नहीं बन सकी क्योंकि फोकस परिस्थितियों के शॉर्ट-टर्म मैनेजमेंट पर था जिसने जोखिमों को कम करने वाले लॉन्ग-टर्म उपायों को नुकसान पहुंचाया।

पेपर का दूसरा सेक्शन इस बात पर गौर करता है कि 2020 के बाद के परिदृश्य में दोनों पक्ष सीमा पर स्थिरता कैसे ला सकते हैं और, खास तौर पर, सेनाओं की आपसी कटौती क्या अभी भी एक व्यवहारिक विकल्प है। पेपर में इस संबंध में चीन-रूस के अनुभव से सबक लेने की कोशिश की गई है, जो दिखाता है कि सेनाओं में कमी तब होती है जब दोनों देशों के बीच संबंध गहरा होता है और दोनों पक्ष एक-दूसरे पर भरोसे के स्तर और प्रतिरोध की अपनी क्षमताओं के साथ सहज होते हैं। पेपर का निष्कर्ष है कि राजनीतिक विश्वास सेनाओं के सार्थक और आपसी डी-इंडक्शन के लिए एक बड़ी शर्त है। फिलहाल, भारत-चीन के मामले में ऐसी परिस्थितियां नहीं हैं। पेपर के इस सेक्शन में इस बात की पड़ताल भी की गई है कि साल 2000 के बाद से सीमावर्ती क्षेत्रों में भारत और चीन के बीच बुनियादी ढांचे के बढ़ते अंतर ने किस तरह दोनों देशों के लिए चीन-रूस मॉडल को दोहराना मुश्किल बना दिया है।

पेपर का आखिरी सेक्शन उन विकल्पों पर गौर करता है जो सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति के लिए एक फ्रेमवर्क बनाने के लिए भारत के पास हो सकते हैं। इसमें उन कदमों की भी रूपरेखा दी गई है, जिन्हें भारत एकतरफा तौर पर और साथ ही चीन के साथ बातचीत में सीमा क्षेत्र में शांति की बहाली का माहौल तैयार करने के उद्देश्य से अपनाने की सोच सकता है। इस सेक्शन में चीन के साथ बातचीत के तीन-आयामी दृष्टिकोण का सुझाव दिया गया है, जिसके तीन हिस्से हैं सीमा क्षेत्र में स्थिरता लाना, LAC पर प्रतिरोधक क्षमता बनाना और पृष्ठभूमि में पर्याप्त सैन्य संसाधन रखना।

एक स्थिर और पूर्वानुमानित सीमा क्षेत्र बनाना (1988-2012)

शीत युद्ध खत्म होने के बाद, भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को विकसित करने और दुनिया में आए बुनियादी बदलावों के साथ तालमेल बिठाने के लिए एक स्थिर और शांतिपूर्ण माहौल की ज़रूरत थी। भारत-चीन सीमा क्षेत्र में शांतिपूर्ण और ऐसी परिस्थिति प्राथमिक लक्ष्य बन गई, जिसका अनुमान पहले से रहे। चीन भी अपनी दक्षिण-पश्चिमी सीमा पर स्थिरता लाने का इच्छुक था। 1988-89 में तिब्बत में परेशानियां, चीन-सोवियत सरहदी इलाकों में तनावपूर्ण स्थिति, और सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के पतन के बाद चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का डर कि अब यह पश्चिमी देशों के निशाने पर है, चीन के लिए चिंता के विषय थे। वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तनाव कम करना दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद था ताकि संघर्ष की संभावनाएं कम की जा सकें। इस तरह सरहदी इलाके में अमन-चैन के सवाल पर एक जैसे मकसद के साथ भारत और चीन ने अपना नज़रिया तैयार किया।3

लेकिन स्थायी और लंबे समय तक सीमा क्षेत्र में शांति स्थापित करने के तंत्र पर संयुक्त रूप से सहमत होने के लिए सिर्फ एक समान उद्देश्य अपने आप में काफी नहीं था। यह साफ़ हो गया कि सीमावर्ती क्षेत्र के कई हिस्सों में इस मुद्दे पर मतभेद थे कि "वर्किंग बॉर्डर" कहां स्थित हैं। ऐसे स्थानों में गश्ती दल अक्सर एक-दूसरे के इलाकों में पहुंच जाते थे।4 उत्तरी सुमदुरोंगचू घाटी में सीमा-रक्षक बलों के बीच 1987 में शुरू हुआ सशस्त्र "गतिरोध" अभी भी सुलझा नहीं था क्योंकि दोनों पक्ष उस इलाके में सीमा की सटीक निशानदेही पर राज़ी नहीं हो सके थे। चीनी पक्ष के अनुसार, नदी घाटी तथाकथित "7 नवंबर 1959 की LAC" के उनकी तरफ थी। ऐसे काल्पनिक LAC को दर्शाने वाला चीनी नक्शा 15 नवंबर, 1962 की चिट्ठी के साथ जोड़ा गया था, जिसे प्रधानमंत्री चाऊ एनलाई ने एशियाई और अफ्रीकी देशों के नेताओं को लिखा था, लेकिन इस नक्शे में ना तो दूरियां सही अनुपात में थीं और न ही इसके साथ एलाइनमेंट का कोई ब्यौरा था।5 भारत ने 7 नवंबर 1959 के LAC के आइडिया को 1959 में ही खारिज कर दिया था और फिर 1962 में दोबारा ऐसा किया था।

1988 से, चीन के साथ संबंध सामान्य होने के बाद, दोनों पक्षों ने सीमा क्षेत्र में स्थिरता लाने के तरीकों पर चर्चा की है। भारत ने इसे स्वीकार किया कि भारत और चीन के बीच भविष्य में सैन्य संघर्ष की संभावना को कम करने के लिए मंजूर उपायों को लागू करने और उन पर निगरानी रखने के लिए आपस में परिभाषित "कार्यशील सीमा" एक ज़रूरी शर्त थी। किसी साझा मानक के बिना, शांति सुनिश्चित करना व्यावहारिक रूप से मुश्किल हो सकता था। इसे ध्यान में रखते हुए, भारतीय पक्ष ने भारत और चीन के अलग-अलग सीमा दावों और सीमा क्षेत्र में दोनों सैन्य बलों की वास्तविक ज़मीनी स्थिति के बीच अंतर करने का प्रस्ताव रखा।6 इससे भारत का यह रुख बरकरार रहा कि LAC पर कोई सहमति नहीं हुई थी और, इसलिए, पहले एक परिभाषा पर दोनों पक्षों का राज़ी होना ज़रूरी था। इसने चीनी रुख भी कायम रहा कि अमन-चैन के जिन उपायों पर आपसी सहमति हो सकती है, उनका मतलब यह नहीं होगा कि दोनों पक्ष चीन के दावे के मुताबिक LAC (7 नवंबर 1959 की LAC) के अलावा किसी और LAC को चिह्नित करने के लिए भी सहमत हुए थे।

किसी भी तरह के पहले द्विपक्षीय समझौते पर, विशेष रूप से भारत-चीन सीमा क्षेत्र से संबंधित चर्चा 1992 में शुरू हुई। भारत ने कार्यकारी मसौदा मुहैया कराया। भारतीय पक्ष के प्रमुख वार्ताकार के अनुसार, एक बार साझा LAC होने या न होने पर मतभेद दूर हो जाने के बाद, बाकी बातचीत सुचारू रूप से और जल्दी से हो गई।7 भारत-चीन सीमा क्षेत्रों में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अमन-चैन बनाए रखने के समझौते, जिसे आमतौर पर बॉर्डर पीस एंड ट्रैंक्विलिटी एग्रीमेंट (BPTA) के रूप में जाना जाता है, पर 7 सितंबर, 1993 को बीजिंग में दस्तखत किए गए थे।8 इसमें घोषित प्रमुख सिद्धांत थे:

  1. संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए पारस्परिक सम्मान और पारस्परिक गैर-आक्रामकता
  2. मामलों को सुलझाने में सेना का इस्तेमाल या इस्तेमाल की धमकी नहीं
  3. जहां मतभेद आए वहां संयुक्त रूप से LAC का एलाइनमेंट
  4. "परस्पर एवं समान सुरक्षा" की ज़रूरतों के मुताबिक सैन्य बलों को "न्यूनतम स्तर" पर रखना
  5. सैन्य गतिविधि के स्तर और दायरे में परस्पर संयम, जिसे कोई भी पक्ष सीमा के करीब अपना सकता है

ये सिद्धांत व्यवस्थाओं का आधार बने, और उनके कार्यान्वयन में अनपेक्षित सैन्य मुठभेड़ों को रोकने और सीमा क्षेत्र में शांति बनाए रखने की क्षमता थी। 1993 में BPTA के बाद, भारत और चीन ने संयुक्त रूप से सैन्य और नागरिक अधिकारियों वाला एक विशेषज्ञ समूह बनाया था, और इसे इन प्रमुख सिद्धांतों के आधार पर कार्रवाई योग्य प्रस्ताव विकसित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। यह विशेषज्ञ समूह 1989 में भारत-चीन सीमा प्रश्न पर बने संयुक्त कार्य समूह के तत्वावधान में काम कर रहा था। BPTA वह आधार बन गया, जिस पर अगले दो दशकों (2013 तक) के दौरान, दोनों सरकारों ने सीमा क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिए आगे के समझौतों, व्यवस्थाओं और भरोसा बढ़ाने वाले विशेष उपायों पर काम किया।

BPTA के मद्देनज़र तीन और समझौते और प्रोटोकॉल किए गए। इनमें से पहले पर नवंबर 1996 में दस्तखत किए गए, जो भारत-चीन सीमा में वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ सैन्य क्षेत्र में भरोसा बढ़ाने वाले उपायों पर भारत गणराज्य की सरकार और चीनी जनवादी गणराज्य की सरकार के बीच समझौता था। इसे आमतौर पर कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेज़र्स एग्रीमेंट (CBMA)9 के नाम से जाना जाता है। CBMA ने ज़मीन और हवा में बॉर्डर मैनेजमेंट के लिए खास कदमों की रूपरेखा तैयार की, जिससे किसी हादसे की आशंका कम होती। इनमें बड़े पैमाने पर (डिवीज़न-स्ट्रेंथ) सैन्य अभ्यासों पर रोक लगाना और ब्रिगेड-स्तरीय अभ्यासों को शामिल करने और हटाने की जानकारी पहले से देना शामिल था। LAC की मार्गरेखा (एलाइनमेंट) को लेकर दोनों देशों की आपसी धारणाओं में अस्पष्टता को ध्यान में रखते हुए, CBMA के आर्टिकल X में LAC की पूरी मार्गरेखा को लेकर दोनों देशों की धारणाओं को दिखाने वाले नक्शों की अदला-बदली का प्रस्ताव था, जिससे सीमा क्षेत्र में स्थायी शांति बनाए रखने के भारत के दृष्टिकोण की एक बड़ी ज़रूरत पूरी हो सके। इसके अलावा CBMA ने सीमा-रक्षक बलों में कमी की दिशा में काम करने और टैंक, लंबी दूरी के हॉवित्ज़र और मिसाइलों जैसे कुछ हथियारों की तैनाती पर लगाम लगाने की दोनों देशों के साझा मकसद पर ज़ोर दिया।

11 अप्रैल, 2005 को, भारत और चीन ने भारत-चीन सीमा क्षेत्रों में वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ सैन्य क्षेत्र में भरोसा बढ़ाने वाले उपायों के कार्यान्वयन के लिए तौर-तरीकों पर प्रोटोकॉल को अंतिम रूम देकर CBMA का पालन किया।10 इस प्रोटोकॉल में दोनों पक्षों के लिए सरहदी इलाकों में एक-दूसरे के साथ पेश आने का मेकेनिज़्म बनाया गया, साथ ही गश्ती ड्यूटी के दौरान दोनों सेनाओं के एक-दूसरे के संपर्क में आने पर मानक तौर-तरीके बताए गए। इसमें उन विशिष्ट कदमों के बारे में विस्तार से बताया गया जो ऐसे हालातों में तनाव को रोकने के लिए दोनों पक्षों को उठाने होंगे। LAC के विशिष्ट स्थायी बिंदुओं - पश्चिमी क्षेत्र में स्पैंगुर, सिक्किम क्षेत्र में नाथू ला और पूर्वी क्षेत्र में बुम ला - को बॉर्डर पर्सनेल मीटिंग (BPM) की जगहों के तौर पर तय किया गया था जिनका मकसद डिसएंगेजमेंट को बढ़ावा देने के लिए तैयार मंच देना था। यह उन फ्लैग मीटिंग्स के अलावा था, जो LAC के उल्लंघन के मामलों को सुलझाने के लिए दोनों पक्षों में से कोई भी जमीनी स्तर पर तुरंत बुला सकता था। दोनों पक्ष भारत-चीन सीमा के दोनों ओर उच्च सैन्य कमानों के बीच व्यापक सैन्य संपर्क और आपसी विश्वास बनाने के दूसरे उपायों पर भी सहमत हुए। राजनयिक स्तर पर इस प्रक्रिया की निगरानी के लिए जनवरी 2012 में भारत-चीन सीमा मामलों पर वर्किंग मेकेनिज़्म फॉर कोऑर्डिनेशन एंड कोऑपरेशन (WMCC) बनाया गया था।11

सबसे ताज़ा दस्तावेज़ सीमा रक्षा सहयोग पर भारत सरकार और चीनी जनवादी गणराज्य की सरकार के बीच समझौता था, जिसे आमतौर पर एग्रीमेंट ऑन बॉर्डर डिफेंस कोऑपरेशन (BDCA) के रूप में जाना जाता है, जिस पर अक्टूबर 2013 में दस्तखत किए गए थे।12 BDCA ने कुछ और परिस्थितियों की पहचान की, जिनमें सीमा क्षेत्र में व्यवस्था और स्थिरता बनाए रखने के लिए सीमा-रक्षक सेनाएं एक-दूसरे के साथ जानकारियां बांटने या आपसी सहमति से सहयोग के किन्हीं और तरीकों में शामिल हो सकते हैं।

इन चार समझौतों और प्रोटोकॉल ने एक साथ मिलकर भारत-चीन सीमा क्षेत्रों में जमीनी स्तर पर और राजनयिक चैनलों के माध्यम से हालात संभालने के लिए प्रक्रियाएं और तंत्र बनाए। दोनों सेनाओं ने LAC की अपनी धारणाओं के अनुरूप गश्त करना और सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे में सुधार करना जारी रखा। दोनों पक्षों के गश्ती दलों के संपर्क में आने के बाद बने "टकराव" को संभालने और शांत करने के उपायों ने 1993 और 2013 के बीच सीमावर्ती क्षेत्रों में किसी भी बड़े "गतिरोध" को रोकने के लिए काफी अच्छा काम किया।

सीमा प्रबंधन कार्य के साथ-साथ, दोनों देशों ने जून 1999 में पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह की बीजिंग यात्रा के दौरान मंजूर तौर-तरीकों के आधार पर नक्शों पर LAC के एलाइनमेंट पर स्पष्टता लाने का काम एक साथ मिलकर करने का काम शुरू किया। यह काम भारतीय पक्ष की ओर से एक निदेशक स्तर के अधिकारी और चीनी पक्ष की ओर से एक उप महानिदेशक स्तर के अधिकारी की अध्यक्षता वाले एक विशेषज्ञ समूह के माध्यम से और दोनों सेनाओं की भागीदारी के साथ किया गया था। यह प्रक्रिया मार्च 2003 तक, यानी चार साल तक चली। दोनों पक्षों ने मिडिल सेक्टर (भारत में उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश) से शुरुआत की। उन्होंने शुरू में मान्य पैमानों के नक्शे दिखाए और फिर उनकी अदला-बदली की, जिनमें LAC को लेकर उनकी अपनी-अपनी धारणाओं को दिखाया गया था।13 मिडिल सेक्टर में नक्शों की कामयाब अदला-बदली के बाद, विशेषज्ञ समूह ने वेस्टर्न सेक्टर (केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख) पर काम शुरू किया। दोनों पक्ष इस काम को पूरा नहीं कर सके, शायद वेस्टर्न सेक्टर में LAC के अपने-अपने चित्रण के दौरान नक्शा बनाने की प्रक्रिया में उभरे मतभेदों की वजह से।14 LAC पर स्पष्टता लाने का काम 2003 के वसंत में रोक दिया गया था और उसके बाद फिर दोबारा शुरू नहीं हो सका। जून 2003 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की चीन यात्रा के दौरान, दोनों पक्षों ने विशेष प्रतिनिधियों (SR) के तंत्र के माध्यम से सीमा विवाद का राजनीतिक समाधान निकालने की अपनी कोशिशों पर फिर से फोकस करने का फैसला लिया।15 2003 के बाद से यह जिम्मेदारी भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और चीन के राज्य पार्षदों (बाद में विदेश नीति के प्रभारी पोलित ब्यूरो सदस्य) को सौंपी गई है।16

BPTA और CBMA में, LAC की निशानदेही को स्पष्ट करने और सीमावर्ती क्षेत्रों में टकराव को कम करने के लिए प्रोटोकॉल बनाने के काम के अलावा, दोनों पक्ष, सिद्धांत रूप में, LAC पर अपनी सेनाओं को “न्यूनतम स्तर” पर लाने पर भी सहमत हुए थे। BPTA के आर्टिकल II में नीचे बताए जा रहे उद्देश्य को परिभाषित किया गया।

"हर पक्ष वास्तविक नियंत्रण रेखा के नज़दीकी इलाकों में अपने सैन्य बलों को दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण और अच्छे पड़ोसी संबंधों के अनुरूप न्यूनतम स्तर पर रखेगा। दोनों पक्ष आपसी और समान सुरक्षा के सिद्धांत की ज़रूरतों के मुताबिक आपस में राज़ी होने वाली सीमा तक वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपने सैन्य बलों को कम करने पर सहमत हैं। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैन्य बल घटाने की सीमा, गहराई, समय और प्रकृति दोनों देशों के बीच आपसी सलाह के ज़रिए तय की जाएगी। सैन्य बलों की कटौती वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बसे इलाकों के भीतर क्षेत्रवार पारस्परिक रूप से सहमत भौगोलिक स्थानों में अलग-अलग चरणों में की जाएगी।''17

बलों की कटौती के लिए सत्यापन उपायों से संबंधित आर्टिकल VII: “दोनों पक्ष इस समझौते के तहत वास्तविक नियंत्रण रेखा पर इलाकों में सैन्य बलों की कमी और शांति बनाए रखने के लिए सत्यापन के असरदार उपायों और निगरानी की ज़रूरतों के रूप, तरीके, पैमाने और सामग्री पर सलाह-मशविरे के ज़रिए सहमत होंगे।”18

इन आर्टिकलों का मकसद था किसी खास घटना के बाद होने वाले बॉर्डर मैनेजमेंट से आगे बढ़कर व्यापक उपाय वाले पर किसी समझौते तक पहुंचना, जिससे दीर्घकालिक और टिकाऊ आधार पर संघर्ष का पूरा जोखिम कम हो। इस मकसद को ध्यान में रखते हुए, 1994 और 1995 में विशेषज्ञ समूह की बैठकों के दौरान शुरुआती चर्चा हुई। ये चर्चाएं आपसी सैन्य कटौती को नियंत्रित करने वाले संभावित सिद्धांतों और विशेष रूप से "आपसी और समान सुरक्षा" की अवधारणा पर दोनों पक्षों के बीच एक सामान्य समझ बनाने पर केंद्रित थीं। लेकिन, परिभाषाओं पर काम आगे नहीं बढ़ सका। 1996 में, CBMA ने दोहराया कि पारस्परिक रूप से सहमत भौगोलिक क्षेत्रों के भीतर न्यूनतम स्तर तक सेनाओं में कमी एक वांछनीय उद्देश्य था। अनुच्छेद III(2) में ज़रूरी कदमों को भी बताया गया।

"दोनों पक्ष वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पारस्परिक रूप से सहमत भौगोलिक क्षेत्रों में तैनात मैदानी सेना, सीमा रक्षा बलों, अर्धसैनिक बलों और सशस्त्र बल की किसी भी अन्य पारस्परिक रूप से सहमत श्रेणी की संख्या को कम या सीमित करेंगे। कम या सीमित किए जाने वाले हथियारों की प्रमुख श्रेणियां इस प्रकार हैं: लड़ाकू टैंक, पैदल सेना के लड़ाकू वाहन, 77 मिमी या बड़े कैलिबर वाली बंदूकें (हॉवित्ज़र समेत), 120 मिमी या बड़े कैलिबर वाले मोर्टार, सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइलें, सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें और आपसी सहमति से तय कोई और हथियार प्रणाली।''19

आर्टिकल II(3) में कहा गया कि प्रस्तावित सैन्य कटौती की सीमा पर आंकड़ों की अदला-बदली की जाएगी और इलाके की प्रकृति, सड़क और दूसरे बुनियादी ढांचे और सैनिकों और हथियारों को शामिल करने और हटाने में लगने वाले समय को ध्यान में रखते हुए सीमा तय की जाएगी। अंतिम बिंदु इस तथ्य को ध्यान में रखकर जोड़ा गया था कि भारतीय सीमा पर इलाके की प्रकृति दूसरे पक्ष पर मौजूद हालात की तुलना में कहीं ज़्यादा लॉजिस्टिकल चुनौती पेश करती है। चीनी पक्ष को यह साफ़ कर दिया गया था कि इलाके के प्रतिकूल हालात की वजह से बराबरी नहीं हो सकती। यह ज़रूरी समझा गया था कि सैन्य बलों में वास्तविक कटौती शुरू होने से पहले "परस्पर और समान सुरक्षा" के सिद्धांत को परिभाषित किया जाए। चीनी पक्ष इस विचार पर सहमत हुआ और दो समझौतों में इसके लिए प्रावधान किया गया।

BPTA और CBMA ने LAC स्पष्टीकरण, टकराव की खास परिस्थितियों में जोखिम प्रबंधन और LAC पर सैन्य बलों और हथियारों को न्यूनतम स्तर पर लाने के तीनों कामों का कोई क्रम नहीं तय किया था। हालांकि, व्यावहारिक रूप से, भारत ने जोखिम प्रबंधन और LAC स्पष्टीकरण (और जून 2003 के बाद से SR प्रोसेस) के काम को प्राथमिकता दी। ऐसा लगता है कि 1998 के बाद सैन्य कटौती पर कोई गंभीर चर्चा नहीं हुई है। इसके बजाय टकराव से निपटने के लिए बड़े पैमाने पर मानक तरीके तय करने के लिए सीमा प्रबंधन पर बाद के प्रोटोकॉल और समझौतों (2005 और 2013 में) में गहरा विश्लेषण किया गया। यहां तक कि इसमें आपसी सहयोग के लिए अपेक्षाकृत कम चिंताजनक मुद्दों की भी पहचान की गई, जैसे कि LAC पर हथियारों, वन्यजीवों और प्रतिबंधित वस्तुओं की तस्करी से निपटना और संक्रामक रोगों और प्राकृतिक आपदाओं से मुकाबला करना।20 सीमा विवाद के संभावित समाधान के लिए चर्चा कर रहे राजनीतिक स्तर के SR मेकेनिज़्म और सरहदी इलाकों में झड़प की घटनाओं से निपटने के लिए अलग-अलग सैन्य-राजनयिक कोशिशों के बीच, योजनाबद्ध तरीके से सेनाओं के डी-इंडक्शन के ज़रिए पूरी सीमा पर सैन्य तनाव को कम करने का मुख्य उद्देश्य एजेंडे से गायब हो गया। इस बीच, दोनों पक्षों ने अपनी बढ़ती आर्थिक क्षमताओं के अनुरूप सीमावर्ती क्षेत्र में बुनियादी ढांचा बनाना और सैन्य क्षमताओं को बढ़ाना जारी रखा। चीनी पक्ष ज़्यादा तेज़ था क्योंकि उसके पास इलाके के अनुकूल हालात का फायदा था और साथ ही विपरीत भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियों में आधुनिक बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए अधिक वित्तीय और तकनीकी क्षमता थी।

BPTA और CBMA ने तब तक संतोषजनक ढंग से काम किया जब तक दोनों पक्षों के बीच तुलनात्मक रूप से बराबरी थी। दोनों पक्षों को एक-दूसरे के गश्त के पैटर्न और गश्त बिंदुओं का ठीक-ठाक अंदाज़ा था। गश्ती दल के एक-दूसरे के आमने-सामने आने के बावजूद, दोनों पक्षों ने जहां तक मुमकिन था सीधे संपर्क से परहेज़ किया, और जब सीधे संपर्क के अलावा कोई रास्ता नहीं था तो तो दोनों पक्षों के बीच मंजूर प्रक्रियाओं का पालन किया और विवादित इलाकों में नई मौजूदगी बनाने से परहेज़ किया। हालांकि, 2007-08 के बाद, सीमा विवाद को लेकर चीन के रवैये में धीरे-धीरे बदलाव के संकेत मिले।21 चीन ने भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश को "दक्षिण तिब्बत" कहना शुरू कर दिया, वहां पैदा हुए भारतीय नागरिकों को वीज़ा देने से इनकार कर दिया, LAC के भारतीय हिस्से में स्थित कस्बों और गांवों को चीनी या तिब्बती नाम दिए, और गश्त का दायरा आगे की तरफ बढ़ा दिया, जिससे टकराव की तादाद और आवृत्ति में बढ़ोतरी हुई।22 इन बदलावों की एक से ज़्यादा वजह हो सकती हैं, जिनमें बाकी बातों के अलावा, भारत और चीन के बीच बढ़ता आर्थिक अंतर, क्षेत्र में चीन का ज़्यादा राजनयिक प्रभाव, और बुनियादी ढांचे में सुधार के नतीजे में सरहद पर चीनी सैन्य क्षमता में बढ़ोतरी शामिल है।

2013 के बाद से, दोनों पक्षों की सीमा गश्ती के बीच कई टकराव हुए हैं, जिनका दायरा और पैमाना दोनों बढ़े हैं। पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन, जिन्होंने 1993 में BPTA का नेतृत्व किया था, ने 2021 में लिखा कि “सीमा पर टकराव और घुसपैठ, जिन्हें 2012 से पहले चुपचाप नियंत्रित किया जाता था और आसानी से प्रबंधित किया जाता था, अब ज़्यादा बार होते हैं, दोनों पक्ष उनका प्रचार करते हैं और इसके नतीजे में साल 2020 में 1975 के बाद से पहली बार सैनिकों की मौत हुई।''23 सीमा क्षेत्र में कहीं बेहतर चीनी बुनियादी ढांचे की वजह से पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के पास बेहतर एंटी-एक्सेस/एरिया डिनायल की क्षमता है, जिससे वो भारतीय गश्ती दलों को वहां पहुंचने में रुकावट डालती है, जिन क्षेत्रों में पहले वे गश्त कर चुके हैं। इसमें पूर्वी लद्दाख के देपसांग, डेमचोक, चुमार और गलवान इलाके शामिल हैं।24 LAC पर चीनी गश्ती दलों के इस बर्ताव में बढ़ोतरी के साथ-साथ पथराव और कील लगे लकड़ी के डंडों से हमले भी हुए हैं। PLA के व्यवहार ने 1993 के बाद से दोनों पक्षों द्वारा बनाए गए अमन और चैन के ढांचे को धीरे-धीरे कमज़ोर कर दिया है।

मौजूदा स्थिति और भारत के लिए विकल्प

जून 2020 में गलवान घाटी में झड़प के बाद से, दोनों सेनाओं के बीच बीस दौर की सीधी चर्चा हुई है और पश्चिमी क्षेत्र में गतिरोध वाले क्षेत्रों से कैसे पीछे हटना है, इस पर WMCC की कई बैठकें हुई हैं। जुलाई 2023 तक, दोनों सेनाएं LAC के पास पांच स्थानों पर सफलतापूर्वक पीछे हट गई हैं - गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स इलाके में पेट्रोल प्वाइंट (PP)-15, PP-17, और PP-17A, गलवान घाटी में PP-14, और पैंगोंग सो के उत्तरी और दक्षिणी किनारे।25 देपसांग और डेमचोक में, दोनों पक्ष अभी भी संतुष्ट होने तक गतिरोध को हल करने के तरीके पर चर्चा कर रहे हैं (दोनों सेनाएं बख्तरबंद हथियारों और तोपखाने के साथ नज़दीकी टकराव की स्थिति में बनी हुई हैं)। ऐसा लगता है कि सेनाओं को पीछे हटाने या डी-इंडक्शन पर अब तक कोई व्यापक चर्चा नहीं हुई है। इसलिए, गलवान घाटी की घटना के चालीस महीने बाद भी, वेस्टर्न सेक्टर में LAC के दोनों ओर 50,000 से अधिक सैनिक तैनात हैं।

चीन पूरे LAC पर सैन्य बल और क्षमता में बड़े पैमाने पर बढ़ोतरी करता जा रहा है। नवंबर 2022 में CSIS चाइना पावर प्रोजेक्ट की रिपोर्ट से पता चला कि पैंगोंग सो (2020 में टकराव वाले इलाकों में से एक जिसका हल निकाल लिया गया) के सामान्य क्षेत्र में LAC से सिर्फ 6 किलोमीटर की दूरी पर एक नए डिवीज़न-लेवल PLA हेडक्वार्टर और हथियार प्रणालियों के लिए पक्की छत वाली सैन्य छावनी को हटाया नहीं गया था, जबकि झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों के इलाके में दोनों पक्ष पीछे हट चुके थे, और एक नई राडोम फेसिलिटी और पैंगोंग सो पर एक बड़े पुल का निर्माण चल रहा था।26 चीन ने देपसांग क्षेत्र में राकी नाला जैसे विवादित इलाकों में नई चौकियां बनाई हैं, जिनका मकसद भारतीय गश्ती दल को उनकी गश्त सीमा तक पहुंचने से रोकना है।27 नई घातक हथियार प्रणालियों को तिब्बत और शिंजियांग सैन्य ज़िलों में लाया जा रहा है, जिनमें बाकी चीज़ों के अलावा, टाइप 08 बख्तरबंद वाहन, 122-कैलिबर स्व-चालित हॉवित्ज़र, PHL-03 मल्टीपल रॉकेट लॉन्चर, और हल्के टैंक (ZTQ-15) शामिल हैं।28

मार्च 2022 में CSIS चाइना पावर प्रोजेक्ट की एक और रिपोर्ट, जिसमें खास तौर पर भारत-चीन सीमा क्षेत्र के करीब नई चीनी बुनियादी ढांचे की गतिविधि पर नज़र रखी गई, में कहा गया है कि वायुशक्ति का निर्माण "बड़े पैमाने पर हो रहा है।"29 हालांकि वायु सेनाओं के बीच आक्रामक वायुशक्ति क्षमता में अंतर भारत के पक्ष में है, हालिया तस्वीरें इस बात को रेखांकित करती हैं कि चीन इस भारत के इस फायदे को बेअसर करने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रहा है।30 CSIS रिपोर्ट ने तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (TAR) और शिंजियांग उइगुर स्वायत्त क्षेत्र (XUAR) के भीतर कम से कम सैंतीस हवाई अड्डों और हेलीपोर्टों की पहचान की है, जो 2017 के बाद से या तो नए बनाए गए हैं या बड़े पैमाने पर अपग्रेड किए गए हैं। इनमें से तीन हवाई अड्डे- ज़िगाज़-तिंगरी, लुंटसे और न्गारी-बुरांग- TAR में LAC से 60 किलोमीटर से भी कम दूरी पर हैं। XUAR में होतान (केतियन) के एयरफील्ड को भी अपग्रेड किया गया है।31 ये एयरफील्ड सेना की तेज़ी से तैनाती मुमकिन करने और आक्रामक हवाई प्रतिक्रिया में तेज़ी लाने के दोहरे उद्देश्यों को पूरा करेंगे।

नए सीमावर्ती गांव (शियाओ कांग कुन) LAC के बेहद करीब बनाए जा रहे हैं, जो चीनी सीमा रक्षा को मज़बूत करने में मदद करेंगे।32 प्रमुख रेल और सड़क संपर्क (ज़िगाज़ से होतान और G695) की योजना बनाई जा रही है और ये अक्साई चिन क्षेत्र की पूरी लंबाई से गुज़रेंगे। नया G695 हाइवे 1950 के दशक में निर्मित G219 की तुलना में LAC के और भी करीब होगा, जो LAC के समानांतर अरुणाचल प्रदेश में ल्हुंत्से तक है।33 यह हाइवे G219 और G318 की बेहतरी के अलावा है जो LAC के समानांतर लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश तक जाते हैं।34 चाइना पावर प्रोजेक्ट रिपोर्ट में कहा गया है कि पश्चिमी XUAR में, चीन कम से कम आठ सड़कें बना रहा है जो हाइवे G219 से LAC तक जाती हैं। इससे सैनिक और उपकरण गलवान घाटी जैसे दूरदराज के इलाकों में ज़्यादा तेज़ी से जा सकते हैं। इसी तरह, भारत-चीन सीमा क्षेत्र के ईस्टर्न सेक्टर में, निंगची को मेडोग काउंटी से जोड़ने वाली सड़क और सुरंग प्रणाली ने सीधे LAC पर सैनिक ताक़त दिखाने की चीन की क्षमता को बढ़ाया है।

LAC के चीनी इलाके में जो बड़े बदलाव हुए हैं, उससे 2019 की स्थिति को फिर से बहाल करने की संभावना नहीं है। CSIS रिपोर्ट का मानना है, और दूसरे सबूत भी बताते हैं, कि "बीजिंग सीमा से बड़े पैमाने पर पीछे हटने पर विचार नहीं कर रहा है।"35 अमन-चैन के मौजूदा इंतजाम यह गारंटी नहीं दे सकते हैं कि आने वाले वक्त में LAC पर कोई हादसा नहीं होगा।

दिसंबर 2022 में, यांग्त्से (तवांग सब-सेक्टर, ईस्टर्न सेक्टर) में दोनों सेनाओं की भिड़ंत हुई, जिसकी बारीकी से जांच की जानी चाहिए। रिजलाइन पर भारतीय सेना का नियंत्रण होने के बावजूद, LAC के अपनी तरफ PLA के बनाए गए बुनियादी ढांचे ने उसे तेज़ी से सेना जुटाने और भारतीय पक्ष को चुनौती देने के काबिल बनाया। ऐसा नहीं है कि चोटियों पर भारत के नियंत्रण को चुनौती नहीं दी जा सकती है क्योंकि भारत के नियंत्रण वाले हिस्से की प्रकृति प्रतिकूल है, ऑस्ट्रेलियाई रणनीतिक नीति संस्थान (ASPI) ने भू-स्थानिक उपकरणों का इस्तेमाल करके यांग्त्से घटना पर एक हालिया विश्लेषण ने निष्कर्ष निकाला है कि "परिवहन के टिकाऊ बुनियादी ढांचे और इससे जुड़ी हुई क्षमता में PLA ने जैसी बढ़ोतरी की है, वह भविष्य में इस क्षेत्र में भारत-चीन के बीच टकराव के मामले में निर्णायक” साबित हो सकती है।36 ASPI की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की रणनीति लगातार घुसपैठ में शामिल होने की लगती है जो PLA को बाद में “पीछ हटने” के बावजूद रणनीतिक रूप से ऊंचे स्थान पर (LAC के करीब) ला सकती है, जब तक कि यह भारतीय सीमा बलों से यांग्त्से की चोटियों पर नियंत्रण नहीं छीन लेता।37

आगे भी, LAC के दूसरे हिस्सों में PLA के इस तरह के ग्रे-ज़ोन युद्ध छेड़ने की ज़्यादा संभावना है, जिस बारे में भारत के सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने सावित्रीबाई फुले पुणे युनिवर्सिटी में 27 मार्च, 2023 को अपने संबोधन में ध्यान दिलाया था। उन्होंने आगाह किया कि “अतिक्रमण तनाव बढ़ने का संभावित कारण बना हुआ है।”38 मिडिल सेक्टर में LAC और ईस्टर्न सेक्टर में तवांग के पूर्व के इलाके (जिसे अरुणाचल प्रदेश का शेष भाग या RALP भी कहा जाता है) विशेष रूप से असुरक्षित हैं। जब तक निकट भविष्य में भारत का इंफास्ट्रक्चर चीन से मेल नहीं खाता, बीजिंग "फंदा" रणनीति पर फिर से विचार कर सकता है। 1958 के ताइवान जलडमरूमध्य संकट के दौरान, माओत्से तुंग ने जिनमेन और माज़ू के अपतटीय टापुओं पर बमबारी का आदेश दिया, जो मुख्य भूमि के करीब (12 समुद्री मील के दायरे में) थे, लेकिन ताइवानी सैन्य नियंत्रण में थे। चीन का लक्ष्य यह जांचना था कि अमेरिकी इन अपतटीय टापुओं को हमले से बचाने के लिए कितने ईमानदार और प्रतिबद्ध हैं। सोच यह थी कि अगर अमेरिकियों ने लंबे समय तक अपतटीय टापुओं की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध सेना रखी, तो यह "उनकी पीठ पर बोझ" बन सकता है, जैसे उनकी गर्दन के चारों ओर एक फंदा हो जिसे चीन अपनी इच्छानुसार कस सकता है या ढीला कर सकता है (तनाव बढ़ाकर या घटाकर) ताकि "जब भी हम [चीन] उन्हें [संयुक्त राज्य अमेरिका] लात मारना चाहें हम ऐसा कर सकें।"39 इरादा अमेरिकी सेना को तुलनात्मक रूप से कम अहमियत वाली ज़मीन पर स्थायी निगरानी रखने और भारी खर्च करने के लिए "फंसाने" का था। साथ ही अमेरिका को लगातार इस चिंता में रखने का इरादा था कि अगर उन्होंने अपने स्तर पर सैन्य तैनाती घटाई तो इस खेल में उनका रणनीतिक नुकसान हो सकता है। गलवान और यांग्त्से के गतिरोध इसी पैटर्न पर चलते होते हैं।

कुल मिलाकर, चीन नई यथास्थिति के साथ सहज दिखता है। वह तिब्बत और शिंजियांग में रणनीतिक बुनियादी ढांचे को तेज़ी से बढ़ा रहा है। यह भी लगता है कि वह भारत-चीन सीमा क्षेत्र में सामरिक या रणनीतिक फायदा हासिल करने के लिए अभी भी ग्रे-ज़ोन युद्ध जारी रखना चाहता है। LAC पर नई तकनीकों को तैनात किया जा रहा है, जिनमें ड्रोन और मानव रहित हवाई वाहन (UAV), स्वायत्त हथियार प्रणाली और साइबर और इलेक्ट्रॉनिक क्षमताएं शामिल हैं, जो 1990 के दशक में मौजूद नहीं थीं और शांति भंग कर सकती थीं।40 शांति के लिए आज की ज़रूरतों के हिसाब से मौजूदा प्रोटोकॉल काफी नहीं होंगे। इसलिए, जब देपसांग और डेमचोक में मौजूदा टकराव का समाधान हो जाता है, तो सवाल उठता है कि दोनों पक्षों को सीमा क्षेत्र में स्थिरता बहाल करने के लिए क्या करने की ज़रूरत है जो दोनों पक्षों को मंजूर हो। दोनों पक्षों ने तीन चरणों वाली प्रक्रिया की बात की है: डिसएंगेजमेंट, डी-एस्केलेशन और डी-इंडक्शन। चीन और रूस ने 1990 के दशक में ऐसा किया था। इसलिए, यह संक्षेप में जांचने लायक विषय है कि क्या चीन-रूसी अनुभव भारत-चीन मामले में उपयोगी हो सकता है।

लंबित विवादों को सुलझाने और शांति सुनिश्चित करने के ऐसे ही इरादों के साथ रूस ने 1990 के दशक की शुरुआत में सीमा विवाद पर चीन से दोबारा बातचीत की। चीन और रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) ने अप्रैल 1990 में सोवियत-चीनी सीमा क्षेत्रों में सैन्य क्षेत्र में बलों की पारस्परिक कमी और विश्वास निर्माण के लिए दिशानिर्देशों पर समझौते पर दस्तखत किए।41 1990 और 1996 के बीच, उन्होंने राजनीतिक विश्वास और समझ फिर से बनाई और अपने रणनीतिक दृष्टिकोण की फिर से जांच की।42 इससे दोनों पक्षों को अप्रैल 1996 में सीमावर्ती इलाकों के सैन्य क्षेत्र में चीन के साथ भरोसा बढ़ाने वाले उपायों (CBMs) पर एक समझौता करने में मदद मिली और, उसके बाद, मई 1997 में सेना के स्तर में कमी लाने पर एक समझौता (एग्रीमेंट ऑन म्युचुअल रिडक्शन ऑफ मिलिट्री फोर्सेज़ इन द बॉर्डर एरियाज़) हुआ। दूसरे समझौते के तहत 100 किलोमीटर का एक भौगोलिक क्षेत्र स्थापित किया गया जिसके भीतर दोनों पक्षों ने थल और वायु सेना के साथ-साथ हथियारों की मात्रा पर सीमा तय की। 100 किलोमीटर क्षेत्र के भीतर सेनाओं को पीछे हटाने और उनका दायरा तय करना रूस और चीन के बीच एक स्थिर, पूर्वानुमानित और शांतिपूर्ण सीमा का आधार बन गया। चीन-रूस मामले से एक महत्वपूर्ण सीख यह है कि सेनाओं की पारस्परिक कटौती का उपयोग राजनीतिक विश्वास बढ़ाने के लिए नहीं किया गया था; बल्कि, 1990 के दशक में उन्होंने जो विश्वास बनाया था, उसने उनके लिए सैन्य बलों की कमी के समझौते तक पहुंचने के लिए ज़रूरी राजनीतिक माहौल बनाया। एक चीनी विद्वान का निष्कर्ष है कि बेहतर राजनीतिक विश्वास की इस पूर्व-शर्त के बिना, चीन और रूस के बीच सैन्य बल कटौती के प्रयास शायद बहुत आगे नहीं बढ़ पाते।43 इसलिए, धीरे-धीरे और लगातार, पर्याप्त विश्वास और समझ का निर्माण सेनाओं में कमी लिए एक शुरुआती शर्त है। भारत और चीन के बीच राजनीतिक संवाद और दोनों देशों के बीच सामान्य संबंधों का ना होना, जो राजनीतिक भरोसा बनाने के लिए ज़रूरी शर्तें हैं, भारत-चीन संदर्भ में अभी तक मौजूद नहीं हैं।

दोनों पक्षों के लिए कामयाब डी-इंडक्शन के लिए एक और महत्वपूर्ण शर्त है शांति क्षेत्र बनाने के लिए भौगोलिक सीमाओं को निर्धारित करना। चीन-रूस मामले में यह संभव था क्योंकि सीमा के दोनों तरफ एक जैसी प्रकृति वाले भू-भाग थे, जिसने दोनों पक्षों को बिना किसी अतिरिक्त फायदे के डी-इंडक्शन करने में काबिल बनाया। ज़रूरी बदलावों के साथ, चीन-रूसी मॉडल को भारत-चीन संदर्भ में लागू करना व्यवहारिक नहीं है क्योंकि भारत को भू-भाग और जलवायु दोनों के मामले में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हिमालय के वाटरशेड की आधार ऊंचाई औसत समुद्र तल से लगभग 4,000 मीटर ऊपर है (RALP को छोड़कर)। भारत की तरफ पहाड़ नाजुक हैं, भूस्खलन की संभावना अधिक है और चट्टानें खड़ी हैं, जिससे बुनियादी ढांचा तैयार करना एक इंजीनियरिंग चुनौती है। चीन की तरफ, पठारी इलाका ज़्यादातर रेतीला और सपाट है और बुनियादी ढांचा तैयार करना कहीं आसान है। भारत की तरफ पर्वत श्रृंखलाएं और रिजलाइनें हिमालय के वाटरशेड से उत्तर-से-दक्षिण की तरफ जाती हैं जिससे मिडिल और ईस्टर्न सेक्टरों में घाटियों के बीच आवाजाही काफी मुश्किल हो जाती है। चीन की तरफ, समतल ज़मीन होने से उसे पूरे भारत-चीन सीमा क्षेत्र में LAC के समानांतर (और नज़दीक) सड़कें बनाने की छूट मिल जाती है।

भू-भाग की चुनौतियों के साथ-साथ जलवायु की समस्याएं भी जुड़ी हैं। सर्दियों के दौरान, भारतीय क्षेत्र में भारी बर्फ़बारी और हिमस्खलन का खतरा होता है, जबकि गर्मियों में बाढ़ से बुनियादी ढांचे को नुकसान होने की चिंता रहती है। चीनी इलाके में, तुलनात्मक रूप से बहुत कम बर्फ़बारी होती है और बहुत ज़्यादा बाढ़ नहीं आती है, हालांकि पर्माफ़्रॉस्ट (ज़मीन का जमना) और कम ऑक्सीजन जैसी दूसरी वजहें इंसानों और मशीनों के लिए चुनौती पैदा करती हैं। कुल मिलाकर, इसलिए, भूगोल और जलवायु बुनियादी ढांचे के निर्माण और सैन्य दलों की बढ़ोतरी दोनों के मामले में भारत के लिए प्रतिकूल साबित होते हैं। और, अगर सैद्धांतिक रूप से मान लेते हैं कि चीन भौगोलिक और जलवायु संबंधी नुकसान के लिए भारत को पर्याप्त रूप से भरपाई करने देने के लिए दोनों पक्षों के लिए अलग-अलग भौगोलिक सीमाओं पर सहमत हो भी जाता है, फिर भी PLA अपने सीमावर्ती इलाके में काफी नीचे तक लौटने के बावजूद तिब्बती पठार पर तैनात रह सकती है, जिससे यह सुनिश्चित हो जाएगा कि उनके सैनिक जलवायु के अनुसार अच्छी तरह ढल जाएंगे और ज़रूरत पड़ने पर उपकरणों को तेज़ी से आगे ले जाया जा सकता है। भारतीय पक्ष की बात करें तो चीनी सेनाओं की तुलना में कम गहराई तक भी सेनाओं को हटाने के बावजूद भारतीय सैनिक पूरी तरह से जलवायु के अभ्यस्त नहीं हो सकते हैं, और इलाका और मौसम दोनों ही ज़रूरत पड़ने पर तेज़ी से आगे की तरफ फिर से तैनाती में भारतीय सैन्य बलों और उपकरणों के लिए मुश्किल पैदा कर सकते हैं। इसलिए, बुनियादी ढांचा और भूगोल दोनों ही मामलों में सैन्य दृष्टिकोण से भारत नुकसान में है। संक्षेप में, मौजूदा राजनीतिक माहौल और भूगोल को देखते हुए रूस-चीन मॉडल को भारत-चीन मामले में दोहराना मुश्किल हो सकता है।

2024 में भविष्य को देखते हुए, भारत के पास विचार करने के लिए तीन संभावित रास्ते हैं। पहला विकल्प है पूर्वी लद्दाख में सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया पूरी होने के बाद भी अपना लक्ष्य हासिल होने तक मौजूदा नीति पर कायम रहना। दोनों पक्षों की तरफ से बुनियादी ढांचे का निर्माण तेज़ी से जारी है और दोनों सेनाएं LAC पर युद्ध की स्थिति में बनी हुई हैं। 1987 से 1994 तक तवांग सबसेक्टर में सुमदुरोंगचू (वांग डोंग) गतिरोध के संबंध में भी इसी तरह का दृष्टिकोण अपनाया गया था। भारत ने रिजलाइन को नियंत्रित किया और LAC के करीब ज़रूरी बैकअप सेनाओं को तैनात किया जब तक कि दोनों पक्षों ने एक अस्थायी समझौता तैयार नहीं कर लिया। हालांकि, दोनों परिस्थितियों में महत्वपूर्ण अंतर हैं। बीच के पैंतीस वर्षों में बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे के निर्माण के कारण 1990 के दशक की तुलना में आज चीन की पूरी LAC पर बहुत अधिक और आसान पहुंच है। इसने 1990 के दशक की तुलना में सीमा क्षेत्र में लंबे समय तक गतिरोध बनाए रखने के लिए नियमित PLA सैनिकों और उनके साथ आवास, आपूर्ति और उपकरणों समेत सेना की ताक़त के स्तर को भी बढ़ाया है। LAC पर चीन की क्षमताओं से मेल कराने के लिए भारत को बड़े पैमाने पर अतिरिक्त सैन्य, वित्तीय और तकनीकी प्रतिबद्धताओं की ज़रूरत होगी ताकि कमोबेश स्थायी आधार पर LAC के करीब पर्याप्त अतिरिक्त बल बनाए रखा जा सके। यह सैन्य दृष्टिकोण संभव तो है लेकिन देश के खज़ाने की बहुत बड़ी कीमत पर।

दूसरा विकल्प है नियमित राजनीतिक संपर्क को फिर से स्थापित करना, समझ फिर से बनाना (विश्वास में ज़्यादा वक्त लग सकता है), और तनाव कम करने के उपायों पर काम करते हुए सीमा विवाद का राजनीतिक समाधान खोजने के लिए (SR प्रोसेस को फिर से शुरू करके) दोबारा प्रतिबद्ध होना। यह देशों के बीच लंबित सीमा विवादों को हल करने का एक स्थायी तरीका है, लेकिन इसके लिए एक पूर्व शर्त होगी आपसी विश्वास और समझ बनाना। भारत ने इस राजनीतिक समझ को बनाने के लिए अनौपचारिक शिखर सम्मेलन (2018-19) समेत गंभीर प्रयास किए, लेकिन विश्वास की कमी को दूर करने की कोशिशें कामयाब नहीं हुईं। LAC पर हाल की घटनाओं ने राजनीतिक प्रक्रिया को पीछे धकेल दिया है। उच्च-स्तरीय राजनीतिक संपर्क बहाल होने के बाद फिर से समझ विकसित होने में ज़्यादा वक्त लग सकता है। 1971 और 1979 के बीच चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच या 1989 और 1998 के बीच चीन और रूस के बीच हासिल की गई राजनीतिक सफलता से इंकार नहीं किया जा सकता है, लेकिन दोनों ही मामलों में, यह प्रक्रिया कई सालों तक चली थी। इन मामलों में, यह "ज़्यादा बड़ी" शक्ति थी जिसने पहल की और बड़ा दिल दिखाया। बड़ी शक्ति के रूप में चीन ने मौजूदा परिस्थिति में उदारता नहीं दिखाई है। इसलिए, इस बात की संभावना नहीं है कि चीन LAC पर अपनी सेना की तैनाती के संबंध में एकतरफा रियायत देगा। भारत इस विकल्प को मध्यम से दीर्घावधि तक अपना सकता है, बशर्ते दूसरा पक्ष खुले मन का और ईमानदार हो। हालांकि, निकट अवधि में, चीन अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों में जो आक्रामक रुख दिखा रहा है, उससे यह संभावना कम है कि चीन भारत-चीन सीमा पर राजनीतिक समझौते के लिए तैयार होगा। इस दौरान, LAC पर अनिश्चितता जारी रहेगी।

तीसरा और आखिरी विकल्प है वेस्टर्न सेक्टर के बाकी हिस्सों में तनाव कम करने के साथ-साथ देपसांग/डेमचोक की टकराव वाली जगहों से पीछे हटने का काम आगे बढ़ाना, जिसे दोनों पक्ष, वास्तव में, पहले से ही "नो-कॉन्टैक्ट" ज़ोन मानने पर राज़ी हो चुके हैं। अभी की परिस्थितियों में, भारत के लिए इसी विकल्प को अपनाने की सबसे ज़्यादा संभावना है। इस रुख से भारत को बातचीत के माध्यम से फौरी दिक्कत से निपटने की छूट मिलती है, साथ ही उसे तब तक सैन्य स्तर पर फिर से संतुलन लाने का मौका मिलता है जब तक कि राजनीतिक बातचीत की प्रक्रिया के माध्यम से सीमा विवाद का दीर्घकालिक और टिकाऊ समाधान नहीं मिल जाता।

इस विकल्प के तीन घटक हैं: सीमा क्षेत्र को स्थिर करने के लिए चीन के साथ बातचीत करना, LAC पर भरोसेमंद प्रतिरोधक क्षमता तैयार करना, और पृष्ठभूमि में पर्याप्त रिज़र्व रखना। इस विकल्प में नीचे बताई गई बातें शामिल हो सकती हैं:

  1. पूर्वी लद्दाख के डेपसांग बल्ज और डेमचोक में पारस्परिक रूप से सैनिकों को पीछे हटाने के लिए (लेकिन डी-इंडक्शन के लिए नहीं) सेनाओं के बीच बातचीत की जा सकती है।
  2. पूर्वी लद्दाख के उन क्षेत्रों में जहां सैनिकों की वापसी पहले ही हो चुकी है, दोनों पक्ष (WMCC के ज़रिए) तनाव घटाने के (लेकिन डी-इंडक्शन नहीं) उपायों को अपना सकते हैं, जिसमें आमने-सामने के टकराव से बचने के लिए पीछे हटना शामिल किया जा सकता है, जिससे किसी बड़े हादसे की आशंका को कम किया जा सके। इसमें दोनों पक्षों को LAC पर "संपर्क रहित क्षेत्र" तय करने की ज़रूरत हो सकती है।
  3. एक नए समझौते पर बातचीत की जा सकती है जो मौजूदा ज़मीनी हकीकत और नए सैन्य बलों, हथियारों और प्रौद्योगिकियों की तैनाती को ध्यान में रखते हुए BPTA और CBMA की जगह ले या उनमें सुधार करे।
  4. एक-दूसरे के बारे में गलत धारणा को कम करने और राजनीतिक स्तर पर आपसी विश्वास बनाने के लिए SR प्रक्रिया को फिर से शुरू करने समेत नियमित राजनीतिक बातचीत शुरू की जा सकती है। उन्हें दिशा देने के लिए यह प्रक्रिया सैन्य और राजनयिक वार्ता के साथ मिलाकर होनी चाहिए।
  5. दोनों सेनाओं के बीच संपर्क बहाल किया जा सकता है।

इन द्विपक्षीय प्रयासों के अलावा, भारत को LAC पर भरोसेमंद प्रतिरोधक क्षमता और पृष्ठभूमि में पर्याप्त रिज़र्व तैयार करने का काम जारी रखना चाहिए। ऐसे प्रयासों में शामिल हैं:

  • सीमा क्षेत्र में नए निवेश - पहाड़ी हालातों में बुनियादी ढांचा बनाने में तेज़ी लाना, जिसमें लेटरल रोड बनाने के लिए सुरंग बनाने की तकनीक का इस्तेमाल करना और आपातकालीन स्थितियों में सेनाओं की तेज़ी से तैनाती सुनिश्चित करने के लिए आधुनिक लैंडिंग ग्राउंड या एयरफील्ड तैयार करना शामिल है
  • आर्थिक और जनशक्ति लागत कम करने के लिए खुफिया, निगरानी और जासूसी परीक्षण (ISR) में प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल- जैसे आउटर स्पेस, ओवर-द-होराइज़न और ऑन-ग्राउंड सेंसर

तीसरे हिस्से में इन पर और ज़्यादा चर्चा की गई है।

आगे का रास्ता

आगे के रास्ते में ऐसे कदम और गतिविधियां हैं जिन्हें भारत चीन के साथ बातचीत के माध्यम से द्विपक्षीय रूप से अंजाम दे सकता है और साथ ही वे गतिविधियां भी हैं जिनमें भारतीय पक्ष से एकतरफा कार्रवाई की ज़रूरत है।

जहां तक द्विपक्षीय कार्रवाई का सवाल है, मौजूदा शांति व्यवस्था में सुधार LAC पर सामान्य स्थिति की बहाली की प्रक्रिया में एक शुरुआती कदम होना चाहिए। इस काम को आगे बढ़ाने के लिए राजनीतिक संवाद का दोबारा शुरू होना ज़रूरी है। LAC के जिन हिस्सों पर दोनों पक्षों के दावे हैं, वहां टकराव को शांतिपूर्वक हल करने के लिए मौजूदा प्रोटोकॉल और उपाय काम के और मान्य बने रहेंगे, लेकिन उनके साथ नए और अतिरिक्त उपाय जोड़ने होंगे ताकि बदली हुई परिस्थितियों के साथ-साथ उन नई प्रौद्योगिकियों और प्रणालियों को ध्यान में रखा जा सके जो 1993 और 1996 के समझौते होने के बाद से दोनों पक्षों के लिए उपलब्ध हुए हैं। लेकिन दोनों पक्षों की तरफ से मेल खाने वाली राजनीतिक दिशा तय होने के बगैर, मौजूदा संधियों में ज़रूरी बदलाव करने के लिए कोई बड़ा कदम उठाए जाने की संभावना नहीं है ताकि यह संधि सीमावर्ती क्षेत्र में स्थिरता, अमन और चैन कायम रखने में असरदार हो।

द्विपक्षीय कदम के माध्यम से शांति और अमन-चैन की बहाली चरण-दर-चरण प्रक्रिया होगी।

  1. पहले कदम के तौर पर दोनों पक्ष पूर्वी लद्दाख में उन पांच बिंदुओं पर तनाव कम करने के लिए आपसी मंजूरी से तय उपाय कर सकते हैं, जहां पहले ही सेनाएं पीछे हट चुकी हैं। इसके लिए दोनों पक्षों के मुख्य सैन्य बल को टकराव के बिंदुओं से पीछे तय इलाकों में ले जाया जा सकता है और LAC पर पहले से तय न्यूनतम स्तर पर सैन्य बल रखे जा सकते हैं। चूंकि LAC के सटीक एलाइनमेंट पर असहमति है, इसलिए "लाइन ऑफ नो-कॉन्टैक्ट" शायद व्यावहारिक नहीं हो। अगर उन इलाकों में शांति बनाए रखना महत्वपूर्ण समझा जाता है जहां सेनाएं पीछे हटी हैं, तो दोनों पक्षों को "न्यूट्रलाइज़ेशन ज़ोन" (नो-कॉन्टैक्ट ज़ोन) के आइडिया पर खुले मन से सोचना होगा। यह उन दो रेखाओं के बीच पारस्परिक रूप से सहमत ऐसा इलाका हो सकता है, जिस पर दोनों सेनाएं अभी तैनात हैं। ऐसा करते समय सावधानी से आगे बढ़ना ज़रूरी है, ताकि ऐसी स्थिति से बचा जा सके जहां नो-कॉन्टैक्ट ज़ोन केवल विवादित LAC के भारतीय पक्ष पर मौजूद हों। नो-कॉन्टैक्ट ज़ोन का दायरा LAC पर विवादित बिंदु के दोनों ओर फैला होना चाहिए।
  2. ऐसे न्यूट्रलाइज़ेशन ज़ोन में, दोनों पक्ष "कोऑर्डिनेटेड गश्ती" (लेकिन ज्वॉइंट गश्ती नहीं) लागू कर सकते हैं। किसी तरह के भ्रम की गुंजाइश को दूर करने के लिए इस तरह की कोऑर्डिनेटेड गश्ती पहले से तय किए अंतराल पर होनी चाहिए। ऐसे नो-कॉन्टैक्ट ज़ोन में रिमोट सर्वेलांस का इस्तेमाल यह पता लगाने में मदद कर सकता है कि क्या दूसरा पक्ष यथास्थिति में कोई बदलाव कर रहा है। इससे हर पक्ष बिना किसी पूर्वाग्रह के LAC के अपने दावे के साथ बना रहेगा और साथ ही टकराव की परिस्थितियों की संभावना को कम करेगा। यह LAC के दूसरे हिस्सों में तनाव कम करने के लिए एक कामकाजी मॉडल बन सकता है।
  3. अगर पूर्वी लद्दाख (जो मौजूदा गतिरोध की जगह है) में ऊपर बताए गए दो बिंदुओं पर प्रगति होती है, तो LAC पर दूसरे सेगमेंट्स (पूर्वी लद्दाख के बाहर) की मिलकर पहचान करने के लिए WMCC बातचीत कर सकता है जहां साफ़ तौर पर सरहद को लेकर दावे-प्रतिदावे किए जाते हैं। एक बार जब (न्यूट्रलाइज़ेशन ज़ोन की पहचान करने का) काम पूरा हो जाता है, तो उसके बाद, ज़मीनी बल सेना स्तर की बातचीत में पीछे हटने या तनाव कम करने के लिए खास तौर-तरीकों पर काम कर सकते हैं। अगर इस काम को सफल बनाना है तो चीन के लिए यह ज़रूरी होगा कि वो भारतीय पक्ष की भौगोलिक परिस्थितियों का पूरा ध्यान रखे।
  4. LAC पर दोनों पक्षों द्वारा तय बॉर्डर पर्सनेल मीटिंग (BPM) प्वॉइंट्स टकराव की स्थिति को रोकने के साथ-साथ उन्हें मैनेज करने में काफी फायदेमंद रहे हैं क्योंकि वे स्थानीय कमांडरों के बीच बातचीत और संचार को बेहतर बनाने पर फोकस करते हैं। पूरे LAC पर और खास तौर पर विवादास्पद इलाकों में BPM साइटों की तादाद बड़े पैमाने पर बढ़ाई जा सकती है, ताकि ज़मीनी बलों को तुरंत टकराव की स्थिति से निपटने में मदद मिल सके, खासकर उन इलाकों में जहां पीछे हटने या तनाव कम करने का काम अभी तक नहीं हुआ है। दोनों पक्षों की तरफ से मंजूर LAC या न्यूट्रलाइज़ेशन ज़ोन की गैर-मौजूदगी इस तरह के काम को और अधिक जटिल बना सकती है, लेकिन दोनों पक्षों के BPM प्वॉइंट्स उनके अपने-अपने नियंत्रण वाले इलाकों के भीतर हो सकते हैं। BPM दोहरे मकसद को पूरा करते हैं - भरोसा बनाना और टकराव से दूर रहना। इसलिए, यह बिलकुल ज़रूरी नहीं है कि वे LAC पर हों, और किसी भी पक्ष को अपनी जगह को लेकर अविवेकी और अड़ियल नहीं होना चाहिए, साफ़ तौर पर यह समझते हुए कि इससे उनके अपने-अपने दावों पर प्रतिकूल असर नहीं आएगा।
  5. दोनों पक्षों के थिएटर कमांड के साथ-साथ फील्ड लेवल पर भी हॉटलाइन बनाई जा सकती हैं। यह मेकेनिज़्म पहले असरदार ढंग से काम नहीं कर पाया होगा क्योंकि बीजिंग हॉटलाइन को फैसले लेने का नहीं बल्कि केवल संचार का माध्यम मानता था। गलवान टकराव के बाद, सिर्फ संचार के माध्यम वाले प्रस्ताव में भी दम है। यह भी मुमकिन है कि बीजिंग अब अनपेक्षित मुठभेड़ों के मामले को बढ़ने से रोकने के लिए संघर्ष-बचाव तंत्र के रूप में हॉटलाइन के इस्तेमाल पर खुले मन से सोच सकता है।
  6. अगर लद्दाख मॉडल काम करता है, तो ठीक समय पर, यह अचानक टकराव और संघर्ष की संभावना को कम करने के लिए पूरे LAC पर पारस्परिक रूप से सहमत स्थानों पर एक व्यवस्थित और बातचीत के आधार पर सैन्य बलों के डी-एस्केलेशन (लेकिन डी-इंडक्शन नहीं) के लिए आधार तैयार कर सकता है।
  7. 2013 के बाद से LAC पर गलवान घटना के कारण बनी स्थिति ने यह साबित कर दिया है कि मौजूदा CBMs दोनों पक्षों के बीच ज़रूरी स्थितियां और विश्वास पैदा करने में नाकाम रहे हैं। इसके लिए मौजूदा CBMs पर फिर से गौर करने और बदली हुई ज़मीनी हकीकत को ध्यान में रखते हुए इन्हें सुधारने की ज़रूरत है। जब दुर्घटनाओं की संभावना को कम करने के लिए ज़मीनी स्तर पर बातचीत चल रही है, दोनों पक्ष नई असलियतों से निपटने के उद्देश्यों के लिए मौजूदा प्रोटोकॉल में प्रावधानों को बढ़ाने के तरीके भी तलाश सकते हैं। 1993 और 1996 के समझौतों में LAC के नज़दीक ड्रोन, UAVs और दूसरी प्रौद्योगिकियों की गतिविधियों को सीमित करने के लिए विशिष्ट प्रावधानों का अभाव है। ऐसे में अतिरिक्त CBMs की ज़रूरत है, जो अमन और चैन में रुकावट डालने वाली नई प्रौद्योगिकियों की गतिविधियों को रोक सकें। भारतीय पक्ष को LAC या न्यूट्रलाइज़ेशन ज़ोन के करीब ऐसी नई प्रौद्योगिकियों का खास स्थितियों में इस्तेमाल और एक तय दूरी तक इनके इस्तेमाल पर प्रतिबंध का प्रस्ताव देना चाहिए। मिसाइल तैनात करने को भी इसके दायरे में लाकर आपसी और समान सुरक्षा के विचार को मज़बूत किया जा सकता है।

चीन के साथ एक नई सीमा प्रबंधन व्यवस्था पर बातचीत करते समय, यह ध्यान में रखना अच्छा होगा कि बीजिंग के लिए, बातचीत और ग्रे-ज़ोन युद्ध बेमेल उद्देश्य नहीं हैं। वे "राजनीतिक युद्ध" के एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। कोरियाई युद्ध के दौरान अमेरिका-चीन वार्ता से संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए सबक पर फॉरेन अफेयर्स में हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट में यह नतीजा निकाला गया कि चीन शांति के लिए नहीं, बल्कि ज़मीन पर अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिए वक्त हासिल करने के मकसद से बातचीत करता है। बातचीत की पेशकश करके, चीन या तो बातचीत की मेज़ पर उस चीज़ को हासिल करने की उम्मीद करता है जो वो मैदान में हासिल करने के नाकाबिल था या फिर युद्ध के मैदान में ठहराव का फायदा उठाकर अपनी सीमाओं के आसपास अपनी स्थिति को मज़बूत करने में लग जाता है, ताकि अगर लड़ाई फिर शुरू होती है तो उन्हें उखाड़ना काफी हद तक मुश्किल हो जाए।44 भारत-चीन सीमा क्षेत्र के मामले में, यह साफ़ है कि चीन ने 1996 और 2019 के बीच LAC पर शांति का फायदा उठाने की कोशिश की और सैन्य प्रशिक्षण, सीमा पर गांवों का निर्माण और बुनियादी ढांचे में सुधार को मिलाकर नई सैन्य क्षमताएं बनाईं। ये काम इस तरह से किए गए कि 1993 और 1996 के समझौतों में लिखी किसी शर्त का उल्लंघन न हो। इसलिए, जब चर्चा का ताज़ा दौर शुरू हो तो भारतीय पक्ष को बातचीत की रणनीति में इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इस बार भी चीन इस बातचीत का इस्तेमाल वक्त काटने या बुनियादी ढांचे को और मज़बूत करने के लिए कर सकता है। साथ ही भारतीय पक्ष को अपनी क्षमताओं की तैनाती करनी चाहिए ताकि चीनी पक्ष को दिखाया जा सके कि LAC पर किसी भी तरह की नई झड़प या अनुचित बर्ताव का जवाब देने के लिए भारत पूरी तरह तैयार है। इस तरह, पूरे LAC पर एक भरोसेमंद प्रतिरोधक क्षमता बनाना ज़रूरी है, जिसमें टिकाऊ जवाबी प्रतिक्रिया के लिए पृष्ठभूमि में (रिज़र्व की तरह) पर्याप्त क्षमताएं तैनात की जाएं। भारत की सैन्य शक्ति की दृढ़ता और उसकी प्रतिरोधक क्षमता की गुणवत्ता के साथ-साथ सीमा पर शांति के लिए नई रूपरेखा, जिस पर भारत और चीन गलवान के बाद काम कर रहे हैं, दोनों चीज़ें उनके बीच सीमा पर शांति और स्थिरता सुनिश्चित करेंगी।

LAC पर एक भरोसेमंद प्रतिरोधक क्षमता और पृष्ठभूमि में पर्याप्त रिज़र्व बनाने में नीचे बताए गए कदम शामिल हो सकते हैं।

  1. LAC पर मज़बूत प्रतिरोधक क्षमता वाली ऐसी चीज़ों की पहचान की जानी चाहिए जिन्हें मौजूदा भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियों में लगातार बनाए रखा जा सकता है। रसद (परिवहन, वाहन, आपूर्ति लाइनें, आवास और संचार) को समस्या वाली जगहों पर तैनात और सुदृढ़ करने की ज़रूरत है। सैन्य बल और हथियार ऐसे हों जिन पर जलवायु का असर कम पड़े और उनके लिए हर ज़रूरी चीज़ का इंतजाम किया जाए। उदाहरण के लिए, 2022 में रक्षा मंत्रालय ने तवांग सेक्टर में समुद्र तल से 10,000 फीट ऊपर सैनिकों के लिए एक मॉडल पोस्ट बनाया था जिसके लिए तुरंत जमने वाले कंपाउंड, बेहतरीन क्षमता वाले सीमेंट प्लेटों और बांस की मदद से ज़्यादा मज़बूत किए गए कंक्रीट फ्रेम का इस्तेमाल किया गया, जिससे निर्माण में लगने वाला समय कम हो गया और मज़बूती के साथ-साथ पोर्टेबिलिटी भी बढ़ी।45 अगर ऐसी पोस्ट की डिज़ाइन और इंजीनियरिंग को और बेहतर किया जा सके, तो इसे LAC के दूसरे हिस्सों में भी आजमाया जा सकता है। ऐसी भी खबरें हैं कि बख्तरबंद वाहनों की ज़रूरत को पूरा करने के लिए, भारतीय सेना ने कल्याणी M4 जैसे वाहनों का ऑर्डर दिया है और उन्हें पूर्वी लद्दाख में तैनात किया गया है।46 M4 को सेना के कहने पर एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइलों के साथ भी अपग्रेड किया जाना है।
  2. इस अभ्यास के तकनीकी पहलुओं के अलावा, सरकार के सीमा विकास कार्यक्रमों (जैसे कि सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम और, हाल ही में, वाइब्रेंट विलेजेज़ प्रोग्राम) और LAC के नज़दीक सेना की ज़रूरतों के बीच अधिक समन्वय की ज़रूरत है। इसलिए, सीमावर्ती क्षेत्रों में नागरिक-सैन्य एकीकरण को और अधिक प्राथमिकता दी जा सकती है। एक विशेषज्ञ समूह बनाया जाए जिसमें गृह मंत्रालय (प्रमुख एजेंसी), विदेश मंत्रालय, वित्त और रक्षा (सैन्य मामलों के विभाग सहित), अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और संघ शासित प्रदेश लद्दाख की राज्य सरकारों, और सशस्त्र सेवाओं के प्रतिनिधि हों। इस समूह को सभी सेक्टरों में नागरिकों और सेना के बीच मेल-मिलाप के लिए छोटी और मध्यम अवधि की योजनाएं तैयार करने का काम सौंपा जाना चाहिए। इस संबंध में अक्टूबर 2023 में अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री का एक स्वागत योग्य बयान आया, जिन्होंने कहा कि वाइब्रेंट विलेजेज़ प्रोग्राम के पहले चरण के 665 गांवों में से 453 गांवों को अरुणाचल प्रदेश में विकसित किया जाना है।47 उन्होंने आगे कहा कि इन गांवों को विकसित करने में सेना और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस की प्रमुख भूमिका है और सड़कों और एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड का भी विकास किया जा रहा है, साथ ही सैनिकों के लिए बुनियादी ढांचे को भी बेहतर किया जा रहा है।
  3. भारत के सीमा क्षेत्र में बुनियादी ढांचे की कमी ऐसा मुद्दा है जिस पर पहले से ही काम हो रहा है। भारत की तरफ हर मौसम में तेज़ परिवहन क्षमता चीन को मिलने वाले भौगोलिक फायदे को बेअसर कर सकती है। दो मुद्दों को प्राथमिकता के आधार पर निपटाने की ज़रूरत है। सबसे पहले, सीमा क्षेत्र में प्रस्तावित नए बुनियादी ढांचे की योजनाओं का मेल सेना की ज़रूरतों के साथ असली काम शुरू होने से पहले विशेषज्ञ समूह (ऊपर प्रस्तावित) के माध्यम से किया जाना चाहिए। परियोजना की शुरुआत में योजना बनाने के दौरान सेना को शामिल करना ज़रूरी है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बनाया जाने वाला बुनियादी ढांचा विकास के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा की ज़रूरतों को पूरा करता है। दूसरा, बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों में प्राथमिकता के आधार पर वित्तीय, सामग्री और उच्च-प्रौद्योगिकी संसाधनों की तैनाती पर्यावरणीय नियमों के साथ-साथ सरकारी खरीद और भुगतान नियमों में सही बदलाव के साथ की जानी चाहिए। सीमा सड़क संगठन अपने दम पर बुनियादी ढांचे की कमी को पूरा नहीं कर सकता है। विशेष रूप से मिडिल और ईस्टर्न सेक्टरों में बुनियादी ढांचे के निर्माण में तेज़ी लाने की रणनीतिक ज़रूरत को पूरा करने के लिए बड़ी निजी कंपनियों को आकर्षित करना ज़रूरी है, और स्पेशल फोकस होना चाहिए सुरंग और सड़क निर्माण की नवीनतम प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके हाइवे के समानांतर सड़कों के निर्माण पर। इसके लिए, सामान्य वित्तीय नियमों और सरकारी खरीद प्रक्रियाओं में अपवादों को तैयार करने की ज़रूरत होगी, और मुश्किल इलाकों और दुर्गम परिस्थितियों में परियोजनाएं शुरू करने के लिए निजी कंपनियों को आकर्षित करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन भी देना पड़ सकता है।
  4. हालांकि भारत-चीन LAC पर "न्यू नॉर्मल" का मतलब है कि 2019 से पहले की तुलना में बड़े लेवल पर फौज की तैनाती की ज़रूरत होगी, वो भी करीब-करीब स्थायी आधार पर। ऐसे में मॉडर्न ISR क्षमताओं की तैनाती से सीमा सुरक्षा को बड़े पैमाने पर बढ़ाया जा सकता है, साथ ही लोगों और उपकरणों को होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। इसमें विभिन्न प्रकार की पहचान क्षमताओं को विकसित करना शामिल है जो न केवल LAC के आसपास बल्कि भीतरी इलाकों में भी गतिविधियों पर नज़र रख सकती हैं। इनमें इल्केट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम-रेडियो तरंगें, माइक्रोवेव, थर्मल इमेजिंग, ऑप्टिकल इमेजिंग, अल्ट्रावायलेट वेव, और हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजिंग जैसी क्षमताएं शामिल होंगी। फिर, इन पेलोड को अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर तैनात करने योग्य बनाने की ज़रूरत होगी, जिन्हें भी विकसित करना होगा- जैसे, ज़मीन पर (पहिए वाले और ट्रैक्ड वाहन और स्टेशनरी माउंट), हवा में (ड्रोन, विमान, हेलीकॉप्टर, एयरोस्टैट और स्यूडो-सैटेलाइट), आकाश में (पृथ्वी की निचली कक्षा में और उससे आगे उपग्रह), और जहां लागू हो, जैसे पैंगोंग सो में, नौसैनिक और ज़मीन से नीचे। इसके बाद, इन क्षमताओं की मदद से इकट्ठा किए गए डेटा को मिलाने, विश्लेषण करने और प्रोसेस करने के बाद तुरंत एक समग्र रूप में सामरिक, परिचालन और रणनीतिक स्तरों पर कमांडरों को देने की भी ज़रूरत होगी। इस चरण में, इकट्ठा जानकारी से कार्रवाई करने लायक खुफिया जानकारी को बाहर निकालने और ऑपरेटरों की मदद करने में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन-लर्निंग एल्गोरिदम और यहां तक कि क्वांटम कंप्यूटिंग जैसी तकनीकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सीधे शब्दों में कहें तो, कंप्यूटर को खतरे का पता लगाने, विश्लेषण करने और उसे पेश करने का काम करने या उसमें मदद करने के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है। अंत में, इस सारी जानकारी के प्रसारण और संचार की प्रक्रिया को ऐसा बनाना होगा कि उस पर जैमिंग, स्पूफिंग और इंटरसेप्शन का असर कम से कम पड़े।
  5. PLA ने इन सभी क्षेत्रों में जबरदस्त क्षमताओं को तैनात किया है और उभरती प्रौद्योगिकियों में महत्वपूर्ण प्रगति की है। इनमें से अधिकांश प्रौद्योगिकियां भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा विकसित और शामिल किए जाने के अलग-अलग चरणों में हैं, लेकिन दोनों के बीच का अंतर बहुत बड़ा है। अपुष्ट सबूतों के अनुसार, चीन ने पूरे LAC पर हाई-रिज़ॉल्यूशन कैमरे तैनात किए हैं जो एक 30 किलोमीटर अंदर तक की तस्वीरें ले सकते हैं। कई नई राडोम सुविधाओं का निर्माण किया गया है जो LAC के भारतीय इलाके में हवाई गतिविधियों का पता लगा सकती हैं। उनके पास LAC के पूरे क्षेत्र को कवर करने के लिए लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO) में सैटेलाइटों का एक समूह है। ऐसा माना जाता है कि चीनी LEO सैटेलाइट हर दिन सात से आठ बार गुज़रते हैं, जबकि LAC के कुछ खास क्षेत्रों का भारतीय उपग्रह कवरेज हर छत्तीस से अड़तालीस घंटे में एक बार तक सीमित है। भारत को हाई-रिज़ॉल्यूशन कैमरों वाले LEO सैटेलाइट के एक समूह की ज़रूरत है, जिनमें सब-मीट्रिक रिज़ॉल्यूशन हो। यह उन क्षेत्रों में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जहां सीधी नज़र नहीं जाती है, जैसे कि कैलाश रेंज और लद्दाख सेक्टर में पश्चिमी राजमार्ग के बीच का इलाका, जहां गलवान घटना के बाद कई नई चीनी सैन्य संपत्तियां और शिविर बनाए गए हैं। LEO का समूह दूरदराज के सीमावर्ती क्षेत्रों में सैनिकों के लिए बेहतर ब्रॉडबैंड इंटरनेट कनेक्टिविटी भी लाएगा, जिससे डेटा के लेन-देन और कोऑर्डिनेशन की सहूलियत बढ़ेगी। इसके अलावा, जियोस्टेशनरी कम्युनिकेशन सैटेलाइट सीमा पर संचार के बुनियादी ढांचे को बढ़ा सकते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि सेना और कमांड सेंटर दूरदराज के इलाकों में भी आपस में संपर्क में रहें।
  6. हाई-एल्टीट्यूड, लॉन्ग-एंड्युरेंस UAV और मीडियम-एल्टीट्यूड, लॉन्ग-एंड्युरेंस UAV या दूर तक निगरानी क्षमताओं वाले दूसरे लॉन्ग-एंड्युरेंस एयरक्राफ्ट की तैनाती अर्ली वॉर्निंग सिस्टम का अभिन्न अंग होनी चाहिए। अभी भारतीय स्टार्टअप्स के बनाए ज़्यादातर ड्रोन (चाहे वे फिक्स्ड-विंग, वर्टिकल टेकऑफ़ और लैंडिंग वाले, या हाइब्रिड हों) औसतन ज़्यादा से ज़्यादा 4,500-5,000 मीटर ऊंचाई तक काम कर पाते हैं। वेस्टर्न सेक्टर में तो ज़मीनी ऊंचाई ही इतनी है। उदाहरण के लिए, डेमचोक 4,200 मीटर की ऊंचाई पर है, दौलत बेग ओल्डी 5,084 मीटर पर है, और रेज़ांग ला लगभग 5,200 मीटर की ऊंचाई पर है। यह इन क्षेत्रों के आसपास की ऊंची चोटियों और पहाड़ों को कम करके आंकने जैसा है, जिनसे किसी भी विमान को बचना होगा। इसलिए, इन ड्रोनों की परिचालन सीमा बढ़ाने के लिए निवेश की ज़रूरत है, ताकि वे इन भौगोलिक इलाकों में तैनात किए जा सकें।
  7. जहां तक हाई-रिज़ॉल्यूशन वाले कैमरों और सेंसरों का सवाल है, चीन LAC के नज़दीक इन्हें लगाने पर इस आधार पर आपत्ति जता सकता है कि ये BPTA और CBMA का उल्लंघन हैं। हालांकि, उसके पास इन इलाकों में पहले से ही एक डेडिकेटेड पावर सोर्स के साथ वाले कैमरे हैं। LAC या न्यूट्रलाइजेशन ज़ोन से समान दूरी पर गैर-घातक निगरानी क्षमताएं स्थापित करने के लिए दोनों पक्षों की आपसी सहमति बातचीत प्रक्रिया का हिस्सा होनी चाहिए। सिंथेटिक एपर्चर रडार से लैस उपग्रह हर मौसम में, दिन-रात इमेजिंग क्षमताएं प्रदान कर सकते हैं, लेकिन ज़मीन-आधारित सेंसर का होना भी ज़रूरी है।
  8. कई स्तरों की निगरानी (ज़मीन, हवा, अंतरिक्ष और साइबर) की अवधारणा पर आधारित खुफिया जानकारी इकट्ठा करना तभी असरदार हो सकता है जब अलग-अलग स्रोतों से सभी रियल-टाइम डेटा को विश्लेषण और व्याख्या के लिए एक ही मंच (एग्रीगेटर) पर एकीकृत किया जा सके और इसे रियल-टाइम में ही सभी संबंधित पक्षों (खास तौर पर ज़मीनी स्तर पर) को भेजा जा सके। सूचनाएं जमा करने वाले प्लेटफ़ॉर्म जो हार्डवेयर और सॉफ़्टवेयर को इंटीग्रेट करते हैं, सीमा क्षेत्र में सतर्कता बढ़ाने के लिए बेहद ज़रूरी हैं और ये लागत और रख-रखाव के नुकसान को कम करने में मदद करेंगे। इस मामले में तेज़ी से आगे बढ़ने के लिए भारतीय निजी क्षेत्र की सॉफ्टवेयर और प्लेटफ़ॉर्म डिज़ाइन क्षमताओं का फायदा उठाया जाना चाहिए। भारतीय निजी क्षेत्र की क्षमताओं का उपयोग करने से LAC पर सतर्कता और सुरक्षा तैयारियों में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी होगी, बशर्ते सरकार सही वातावरण बनाए जो डेटा सुरक्षा सुनिश्चित करे और निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों को तकनीकी समाधान तैयार और लागू करने के लिए मिलकर काम करने को बढ़ावा दे। ऐसा करने का एक संभावित तरीका है कि सरकार, सशस्त्र बल और रक्षा उद्योग थर्ड-पार्टी संगठनों और विशेषज्ञों के साथ काम करें ताकि सशस्त्र बलों की फौरी ज़रूरतों से आगे बढ़कर रक्षा में इनोवेशन को बढ़ावा दिया जा सके, खासकर उन प्रौद्योगिकियों में जो सीमावर्ती इलाकों में दोनों पक्षों के बीच के अंतर को कम करने में मदद कर सकते हैं। रक्षा उत्कृष्टता के लिए इनोवेशन भी इस खास काम में मदद कर सकता है, और इसके लिए सेना, अनुसंधान संस्थानों और निजी क्षेत्र के बीच सहयोग को बढ़ावा देना होगा। इसमें कार्रवाई के लायक (रियल-टाइम) खुफिया जानकारी देने के लिए कई स्रोतों से डेटा का विश्लेषण करने के मकसद से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित सॉल्यूशंस का विकास भी शामिल है।
  9. एक कामयाब डी-एस्केलेशन एक्सरसाइज़ का मतलब यह होगा कि मुख्य सैन्य बल LAC पर टकराव वाली जगहों से पीछे हटकर पहले से तय इलाकों में चला जाएगा, जहां से भारत के लिए किसी हमले का तुरंत जवाब देना तब भी मुमकिन रहे। इस डी-एस्केलेशन एक्सरसाइज़ में यह सुनिश्चित होना चाहिए कि PLA के उकसाए जाने पर असरदार जवाब देने के लिए सही स्टेजिंग एरिया, लॉजिस्टिक्स डिपो, सैनिकों के लिए आवास और परिवहन सुविधाओं के साथ-साथ पर्याप्त रिज़र्व मौजूद हैं। इसके लिए सीमा विकास और बुनियादी ढांचे के कार्यक्रमों को सशस्त्र बलों की इकाइयों या डिवीज़न के साथ एकीकृत करना ज़रूरी है। इसका मतलब यह है कि उन जगहों की पहचान और विकास की ज़रूरत है जहां ज़्यादा ऊंचाई वाले हालात में उपकरणों के साथ-साथ सैन्य बलों को सही-सलामत बनाए रखा जा सके।

निष्कर्ष

इस पेपर का उद्देश्य सीमा पर शांति की मौजूदा व्यवस्था में कमियों का विश्लेषण करना और उन व्यवस्थाओं को मज़बूती देने के तरीके सुझाना था ताकि सीमावर्ती इलाकों में स्थिरता और शांतिपूर्ण स्थिति का उद्देश्य पूरा किया जा सके। यह इस अंदाज़ पर आधारित है कि सीमा विवाद के समाधान की दिशा में जल्दी तरक्की होने की संभावना नहीं है, और न ही चीन पूरे LAC पर भारत पर दबाव बनाए रखने के लिए ग्रे-ज़ोन युद्ध रणनीति का सहारा लेने का विकल्प छोड़ेगा। ऐसी परिस्थितियों में, पेपर का सुझाव है कि अमन और चैन की व्यवस्था को फिर से बनाने और मज़बूती देने के लिए चीन के साथ बातचीत एक महत्वपूर्ण उपाय है। इस बारे में कई आइडिया पेश किए गए हैं, जिनमें LAC के विवादित इलाकों में दुर्घटना या टकराव की संभावनाओं को कम करने के लिए संभावित नए मॉडल भी शामिल हैं। साथ ही, यह सुझाव भी है कि भारतीय पक्ष किसी भी ताज़ा चीनी आक्रामकता या घुसपैठ का मुकाबला करने के लिए LAC (LAC पर और पृष्ठभूमि में भी) पर मज़बूत प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के लिए दूसरे कदम उठाए। इन कदमों में लॉजिस्टिक्स का निर्माण, ISR क्षमताओं में बढ़ोतरी, और भारतीय पक्ष पर विकास और सैन्य-संबंधित गतिविधियों दोनों के लिए नागरिक और सैन्य समन्वय तंत्र का निर्माण शामिल है जो सेना को चीनी कार्रवाई पर तुरंत जवाबी प्रतिक्रिया देने की स्थिति में लाएगा। डिसएंगेजमेंट के बाद, एक दीर्घकालिक उपाय के रूप में, ज़रूरी है कि सिर्फ सीमाओं का प्रबंधन ना किया जाए बल्कि विवाद के राजनीतिक समाधान पर ध्यान लगाया जाए। सेनाओं का आपसी संपर्क सीमाओं पर थोड़े समय तक तो स्थिरता ला सकता है, लेकिन यह उस मुद्दे का दीर्घकालिक और स्थायी समाधान नहीं है जिसने पचहत्तर सालों से संबंधों में लगातार बड़ी परेशानियां पैदा की हैं।

नोट्स

1 तीन चरणों वाला फॉर्मूला सार्वजनिक बहस का हिस्सा है लेकिन भारतीय पक्ष ने इसे आधिकारिक तौर पर मंजूरी नहीं दी है।

2 इन शब्दों को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है: डिसएंगेजमेंट का मतलब है LAC पर आमने-सामने के टकराव से दोनों पक्षों की सेनाओं का पीछे हटना; डी-एस्केलेशन का मतलब है विवाद के क्षेत्र से कुछ दूरी पर तय इलाकों में सैन्य बलों की पारस्परिक रूप से योजना बनाकर वापसी, साथ ही उसी क्षेत्र में किसी और टकराव से बचने के लिए संबंधित प्रक्रियाओं या प्रोटोकॉल को मानना; और डी-इंडक्शन का मतलब है एक बड़े और विशेष रूप से परिभाषित भौगोलिक क्षेत्र के भीतर हर पक्ष की तरफ से तैनात किए जा सकने वाले सैन्य बलों और हथियारों की संख्या को सीमित करने या पाबंदी लगाने के लिए एक आपसी समझौता, साथ ही उस क्षेत्र से अतिरिक्त सैनिकों और उपकरणों को स्थायी रूप से हटाना भी शामिल होता है।

3 Kalha, Ranjit Singh. India-China Boundary Issues: Quest for Settlement. (New Delhi: Pentagon Press, 2014), 210-11.

4 Menon, Shivshankar. “Pacifying the Border:  The 1993 Border Peace and Tranquility Agreement with China.” In Choices: Inside the Making of India’s Foreign Policy. Penguin Random House India, 2016.

5 "जहां तक 7 नवंबर, 1959 की वास्तविक नियंत्रण रेखा की सटीक जगह का सवाल है, एशियाई और अफ्रीकी देशों के नेताओं को संबोधित प्रधानमंत्री चाउ एन-लाई के 15 नवंबर, 1962 के पत्र से जुड़े मानचित्र 3 और 5 का संदर्भ दिया गया है।" In “Memorandum given by the Ministry of Foreign Affairs, Peking, to the Embassy of India in China, 26 November 1962.” White Paper No. VIII: October 1962-January 1963. Notes, Memoranda and Letters Exchanged Between the Governments of India and China. Ministry of External Affairs, Government of India. New Delhi: Manager of Publications, Delhi, 1963.

6 लद्दाख (वेस्टर्न सेक्टर) और अरुणाचल प्रदेश (ईस्टर्न सेक्टर) दोनों में उनके वास्तविक नियंत्रण वाले क्षेत्रों में भारत और चीन के अपने-अपने दावों में काफ़ी अंतर है और इसके साथ मिडिल सेक्टर में छोटे फिर भी महत्वपूर्ण अंतर हैं। More in Menon, “Pacifying the Border.”

7 Menon, “Pacifying the Border.”

8 United Nations Peacemaker. “Agreement on the Maintenance of Peace and Tranquility along the Line of Actual Control in the India-China Border Areas.” Accessed November 7, 2023. https://peacemaker.un.org/chinaindia-borderagreement93.

9 United Nations Peacemaker. “Agreement between India and China on Confidence-Building Measures in the Military Field along the Line of Actual Control in the India-China Border Areas.” Accessed November 7, 2023. https://peacemaker.un.org/chinaindiaconfidenceagreement96.

10 United Nations Peacemaker. “Protocol between India and China on Modalities for the Implementation of Confidence-Building Measures in the Military Field Along the Line of Actual Control in the India-China Border Areas.” Accessed November 7, 2023. https://peacemaker.un.org/chinaindiaconfidenceagreement2005.

11 Ministry of External Affairs, Government of India. “India-China Agreement on the Establishment of a Working Mechanism for Consultation and Coordination on India-China Border Affairs,” January 17, 2012. https://www.mea.gov.in/bilateral-documents.htm?dtl/17963/IndiaChina+Agreement+on+the+Establishment+of+a+Working+Mechanism+for+Consultation+and+Coordination+on+IndiaChina+Border+Affairs.

12 Ministry of External Affairs, Government of India. “Agreement between the Government of the Republic of India and the Government of the People’s Republic of China on Border Defence Cooperation,” October 23, 2013. https://www.mea.gov.in/bilateral-documents.htm?dtl/22366/Agreement+between+the+Government+of+the+Republic+of+India+and+the+Government+of+the+Peoples+Republic+of+China+on+Border+Defence+Cooperation.

13 इस अभ्यास का उद्देश्य LAC पर साझा सहमति बनाना नहीं था, बल्कि सिर्फ दोनों पक्षों में एक-दूसरे की मार्गरेखा (एलाइनमेंट) की बेहतर समझ लाना था ताकि उन इलाकों के बारे में साझा समझ बन सके जहां दोनों पक्षों के बीच धारणा में अंतर था।

14 Kalha, India-China Boundary Issues, 215.

15 “दोनों पक्ष समग्र द्विपक्षीय संबंधों के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य से सीमा विवाद के समाधान की रूपरेखा का पता लगाने के लिए एक-एक विशेष प्रतिनिधि नियुक्त करने पर सहमत हुए।” More in Press Information Bureau, Government of India. “DECLARATION ON PRINCIPLES FOR RELATIONS AND COMPREHENSIVE COOPERATION BETWEEN THE REPUBLIC OF INDIA AND THE PEOPLE’S REPUBLIC OF CHINA.” June 24, 2003. https://archive.pib.gov.in/archive/releases98/lyr2003/rjun2003/24062003/r2406200318.html.

16 Brajesh Mishra, J. N. Dixit, M. K. Narayanan, Shivshankar Menon and Ajit Doval have served as Indian SRs. Dai Bingguo, Yang Jiechi and Wang Yi have been the SRs from the Chinese side.

17 United Nations Peacemaker. “Agreement on the Maintenance of Peace and Tranquility along the Line of Actual Control in the India-China Border Areas.”

18 Ibid.

19 United Nations Peacemaker. “Agreement between India and China on Confidence-Building Measures in the Military Field along the Line of Actual Control in the India-China Border Areas.”

20 Ministry of External Affairs, Government of India. “Agreement between the Government of the Republic of India and the Government of the People’s Republic of China on Border Defence Cooperation.”

21 बदलाव के संभावित कारणों के ब्यौरे के लिए, विजय गोखले का लेख पढ़ें।  "चीन की भारत नीति का ऐतिहासिक मूल्यांकन: भारत-चीन संबंधों के लिए सबक।” Carnegie India, December 13, 2022. https://carnegieindia. org/2022/12/13/historical-evaluation-of-china-s-india-policy-lessons-for-india-china-relations-pub-88621.

22 “India Lodges Strong Protest with China over Map Claiming ‘India’s Territory.’” Reuters, August 29, 2023. https://www.reuters.com/world/asia-pacific/india-lodges-strong-protest-with-china-over-map-claiming-indias-territory-2023-08-29/.

23 Menon, Shivshankar. India And Asian Geopolitics: The Past, Present. New Delhi: Penguin Allen Lane, 2021, 326.

24 Mehta, Shibani. “Impasse at the LAC: An Examination of the 2013, 2014, and 2015 Standoffs.” Carnegie India, August 31, 2023. https://carnegieindia.org/2023/08/31/impasse-at-lac-examination-of-2013-2014-and-2015-standoffs-pub-90447.

25 Peri, Dinakar. “India, China Troops Disengage at LAC Friction Point in Ladakh.” The Hindu, September 8, 2022. https://www.thehindu.com/news/national/india-china-begin-disengagement-in-gogra-hotsprings-pp-15-in-eastern-ladakh/article65866319.ece.

26 Funaiole, Matthew P., Brian Hart, Joseph S. Bermudez Jr., and Jennifer Jun. “China Is Deepening Its Military Foothold along the Indian Border at Pangong Tso.” ChinaPower Project. Accessed November 8, 2023. https://chinapower.csis.org/analysis/china-satellite-imagery-military-pangong-tso/.

27 Pollock, John, and Damien Symon. “Are China and India Bound for Another Deadly Border Clash?” June 2, 2023. https://www.chathamhouse.org/publications/the-world-today/2023-06/are-china-and-india-bound-another-deadly-border-clash.

28 Rajagopalan, Rajeswari Pillai. “China’s PLA Upgrades Its Forces Along Disputed Border With India.” The Diplomat, May 28, 2021. https://thediplomat.com/2021/05/chinas-pla-upgrades-its-forces-along-disputed-border-with-india/.

29 ChinaPower Project. “How Is China Expanding Its Infrastructure to Project Power Along Its Western Borders?,” March 16, 2022. https://chinapower.csis.org/china-tibet-xinjiang-border-india-military-airport-heliport/.

30 Choudhury, Diptendu. “A Waning Conventional Deterrence- A National Security Portent.” Vivekananda International Foundation, September 22, 2023. https://www.vifindia.org/article/2023/september/22/A-Waning-Conventional-Deterrence-A-National-Security-Portent.

31 Siddique, Huma. “China Continues to Expand Infrastructure and Upgrades Air Bases in Tibet.” Financial Express, August 12, 2022. https://www.financialexpress.com/business/defence-china-continues-to-expand-infrastructure-and-upgrades-air-bases-in-tibet-2627807/.

32 Chadha, Saheb Singh. “China’s Border Villages: Points of Concern.” Carnegie India, September 14, 2023. https://carnegieindia.org/2023/09/14/carnegie-india-s-emerging-voices-2023-pub-90516#Chadha.

33 Krishnan, Ananth. “China Plans Another Highway in Aksai Chin.” The Hindu, July 20, 2022. https://www.thehindu.com/news/international/china-plans-another-aksai-chin-highway/article65663018.ece.

34 Desai, Suyash. “Takshashila Discussion Document - Civilian and Military Developments in Tibet.” The Takshashila Institution, December 6, 2021. https://takshashila.org.in/research/takshashila-discussion-document-civilian-and-military-developments-in-tibet.

35 Funaiole, Hart, Bermudez Jr., and Jun. “China Is Deepening Its Military Foothold along the Indian Border at Pangong Tso.”.

36 Grewal, Baani, and Nathan Ruser. “The Latest Flashpoint on the India-China Border: Zooming into the Tawang Border Skirmishes.” Australian Strategic Policy Institute, December 20, 2022. http://www.aspi.org.au/report/latest-flashpoint-india-china-border-zooming-tawang-border-skirmishes.

37 Ibid.

38 Pandit, Rajat. “India Needs Capabilities to Tackle ‘Grey Zone’ Warfare from China, Pakistan: Army Chief.” The Times of India, March 23, 2023. https://timesofindia.indiatimes.com/india/india-needs-capabilities-to-tackle-grey-zone-warfare-from-china-pakistan-army-chief/articleshow/98923368.cms?from=mdr.

39 Wu, Lengxi. “Memoir by Wu Lengxi, ‘Inside Story of the Decision Making during the Shelling of Jinmen.’” Wilson Center Digital Archive. Accessed November 8, 2023. https://digitalarchive.wilsoncenter.org/document/memoir-wu-lengxi-inside-story-decision-making-during-shelling-jinmen.

40 Saxena, Anushka. “China’s Approach to Military Unmanned Aerial Vehicles and Drone Autonomy.” Takshashila Discussion SlideDoc. Takshashila Institution, September 28, 2023. https://takshashila.org.in/research/takshashila-slidedoc-chinas-approach-to-military-unmanned-aerial-vehicles-and-drone-autonomy.

41 समझौते में क्या लिखा है, यह सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है, लेकिन इसके संदर्भ निम्नलिखित स्रोतों में मिल सकते हैं: “Letter Dated 13 May 1996 from the Representatives of China, Kazakstan, Kyrgyzstan, the Russian Federation and Tajikistan to the United Nations Addressed to the Secretary-General.” United Nations, May 17, 1996. https://peacemaker.un.org/sites/peacemaker.un.org/files/960426_AgreementConfidenceBuildingMilitaryFieldinBorderArea.pdf; Federation of American Scientists. “Mutual Reduction of Military Forces in the Border Areas.” Accessed December 12, 2023. https://nuke.fas.org/control/mrmfba/index.html; Lewis, Donald C. “The Sino-Soviet Military Rapprochement.” Military Studies Project. U.S. Army War College, Carlisle Barracks, PA 17013-5050, February 28, 1991. https://apps.dtic.mil/sti/tr/pdf/ADA233476.pdf.

42 ऐसा लगता है कि शीत युद्ध के बाद की दुनिया में संयुक्त राज्य अमेरिका के दीर्घकालिक रणनीतिक इरादों के बारे में उनकी आपसी चिंताओं ने दोनों पक्षों के बीच इस तरह के रणनीतिक बदलाव को स्वीकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

43 Yuan, Jing-dong. “Sino-Russian Confidence-Building Measures: A Preliminary Analysis.” Asian Perspective 22, no. 1 (1998): 71–108.

44 Gallagher, Mike, and Aaron MacLean. “Why America Forgets—and China Remembers—the Korean War.” Foreign Affairs, July 26, 2023. https://www.foreignaffairs.com/united-states/why-america-forgets-and-china-remembers-korean-war.

45 “Smarter Army Posts along Border with China to Improve Living Conditions of Troops.” The Hindu, October 21, 2022. https://www.thehindu.com/news/national/other-states/smarter-army-posts-along-border-with-china-to-improve-living-conditions-of-troops/article66039642.ece.

46 Peri, Dinakar. “Army to Get More M4 Armoured Vehicles, with Spike Missiles.” The Hindu, October 26, 2022. https://www.thehindu.com/news/national/bharat-forge-to-add-anti-tank-missiles-on-m4-vehicles-for-army-and-also-export/article66057873.ece.

47 Chauhan, Neeraj. “Centre Approves Border Intelligence Posts along LAC, Says Top Official.” Hindustan Times, October 2, 2023. https://www.hindustantimes.com/india-news/centre-approves-border-intelligence-posts-along-lac-says-top-official-101696253235586.html.

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